Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 365
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३५४ ) सत्य बोध: करalमां आवेतो तेथी कंइ आत्मानी रूद्धि प्राप्त यती नयी, तेमज जन्मजरा मरणना बंधनमाथी छूटातुं नथी. सातनय अने चारनिक्षेप पूर्वक आत्मज्ञान थायतो मिथ्यात्त देवगुरू धर्मना असद् विचारोतो नाश थाय. सत्यज्ञान थतां आत्मज्ञानिनी कवी दशा थायछे ते जणावेछे. " दोहा. १५६ सघळो दुनिया खेल; टाळे सघळो मेल. करतां निजगुण खोज; चिदानन्दनी मोज. १५७ प्रगटपणे निरखाय; भोळा जन भरमाय. फोक करीने लेखवे, योगाभ्यासी थइ खरे, टळे कर्मनो मेल सहु, निजघटमा प्रगट तदा, अन्तर ऋद्धि ज्ञानथी, बाहिर रुद्धि बापडा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " विद्युत्ना चमकार, " तनु धन यौवन कारमुं परभव साथ न आवतुं, मोह्या मूढ गमार. राची रूद्धि कारणे, जीव दणे केइ लाख ; जीवन तेनुं धूळसम, : जाणो छेवट राख. For Private And Personal Use Only ૫ १५९ १६० मात्र नथी. भावार्थ - आत्मज्ञानिसन्त सांसारिक मोहक पदार्थोनी रचनाने मिथ्या जाणेछे. मोहक जड पदार्थोमां आत्मत्व लेश एवं सत्य निश्चय करी योगाभ्यासमां प्रवृत्त थायछे आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान अने कर्मरूप मलिनतानो नाश करेछे, ध्यान अने समाधिद्वारा शोध करत आत्मा पोतेज परमात्मा वनेछे, परमात्मा बनतां अनन्तगुण यम, नियम, समाधिथी अ

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