Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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परमात्मदर्शन,
(३५५ ) आविर्भाव थायछे, केवलज्ञानथी सर्व रूद्धि प्रत्यक्ष देखायछे एम आत्मज्ञानिमां परिपूर्ण निश्चय थायछे. आत्मज्ञानी विचारेछे के अज्ञानि पामर जीवोज उपाधिमय सुवर्गादिक बाह्यरुद्धिमां आसक्त होयछे. एवं सत्य अने असत्यतो ज्ञानी निर्णय करेछे. सम्यक्त्व जडवस्तुओ जेवीके तनु धन यौवनपणुं आदिने विद्युत्ना चमकारानी पेठे क्षणिक गणेछे, परभव तेमांन कंइ साये आवतुं नथी. अहो मोहमनमूर्खजीवो ! जडवस्तुओमां राची रहेछे. जे वस्तुओपर राग धारण करेछे ते वस्तुओ मृत्युबाद कदी साथे आवती नथी. ज्यारे आ प्रमाणे छे तो आत्मानी रूद्धिविना बाह्य जड रूद्धिमा केम मूढनी पेठे राचीमाची रहुं. अलबत तेमां मूर्छाधारवी ते योग्य नथो एम ज्ञानी निश्चय करेछे, अज्ञानी पामर जीव वाह्य लक्ष्मीनी प्राप्ति माटे अनेक प्रकारना हिंसक व्यापारोमां लक्ष जीवोनो नाश करेछे. अज्ञानी जीव मत्स्य, सूकर, पशु, पंखोना जीवोनो आ जीविका माटे नाश करेछे. तादृशअज्ञानिजीवोनुं जीवq पाप माटे जाणवू. एतादृश पापी जीवो मृत्यु पामी नरकादि दुर्गतिमा जायछे. तेवा पापी जीवोनुं जीवन धूळ करतां अनिष्ट पृथ्वीमां भारभूत जाण. तेवा पापिजीवो उपर करुणादृष्टिथी जोवू योग्यछे. उपदेशा दिकथी पापियोनो उद्धार करवो जोइए. राखमां पडेलु घृत यथा नकामुं छे तद्वत् पापिजीवोठे आयुष्य स्वपरापेक्षाए तेवी पापदशा वर्ते तावत् पर्यंत नकामुं जाणवू. बाह्यमांज सुखनी बुद्धि धारण करनाराओनी अशुभ प्रवृत्ति दर्शावेछे.
"दहा." असत्य वाणी बोलीने, जन वंचे धन हेत; अशुभ कर्म पोठी भरी, जन्म जन्म दुःख लेत. १६१ चोरी बाडी चुंगली, परनिन्दा अपमान
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