Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 378
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम प्रभुसम ध्यानथी, स्वकीय चेतन धार ध्याता ध्याने ध्येयरूप, सिद्ध बुद्ध निर्धार. ॥५५|| ताहकू ईश्वर सिद्धने, वन्दु वार हजार; तेना सम्बर ज्ञानची, लहिये भवजलपार ६|| सम्यग् ज्ञानक्रियाथकी, मोक्ष न होय परोक्ष; आत्मज्ञान ध्यानादिथी, त्वरित पामो मोक्ष. ॥१७॥ . भावार्थ-परना.बे भेदखे. अष्टकर्मसहित संसारिजीब से पान अपेक्षाए ईश्वरछे, अष्टकर्मनो संपूर्ण नाश करी जे मुक्ति पायाने सिद परमात्मा ईश्वर कहेवायछे, जीवो कर्मरूप सृष्टिना का पर परिणतियोगे जाणवा, शाता अने अशाता बेदनीय कर्म ही भा. स्मान पोसाने सुख दुःख आपेछे. कर्मष्ठिनो कर्ता तथा सेनी भोका नीषरूप ईकर जाणवो. जीवरूप ईश्वर संसारिकवस्थामा कमहिनो कर्म जाणवो. सृष्टिकर्तृत्व जीवरुष ईश्वरवे परभाव हमपानी अाए घटेछे एक रहस्य अनुभेक्षा करवा योग्यछे. पीपल्प पर, कर्यरूप सृष्टिनो का व्यवहारनयथी जाणवो. अशुद्धनयथी जीवरूप ईश्वर परवस्तुनो कर्ता निमित्तपणे जाणवो. हे भव्य आवी अपेक्षाथी ईश्वर कर्तृत्वरहस्य हृदयमा धारण कर. भुव निधनषधी कर्मरूप सृष्टिनो कर्चा ईश्वर नथी. अत्मिक साल मुखनो का अशुद्ध स्वभावथी आत्माछे. दुसनो कई पस्वभावधी आत्माछे.ज्यारे संपूर्ण अशुद्ध परिणति (परपरिषति) मो आत्मध्यानधी नाश थायछे त्यारे आत्माना अनंताणको आस्मा स्वयं कर्ता थापछे. भन्यो सापेक्षता समजता नथी. अने एकांत प्राण For Private And Personal Use Only

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