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(५४) कर्म स्वयमेव सुख दुम भापेछे. आशंका-तेम करतांइश्वर अन्यायी दयाहीन प्रपंची शीरीते ठरे वारु? समाधान-कर्म फल पापवामां परतंत्रछे. तेम लागवामां पण पर
तंत्र, जे परतंत्र होय ते सदाय फलोदयमां तथा लागवामां परतंत्रज रहेछे, जेम तरवार बीजाने लागवामा तथा तेनो प्राण लेवामां सदाय परतंत्र रहीने कार्य करेछे. मनुष्य हाथमां तरवार ग्रहीने अन्यने मारे त्यारे तेना प्राणनो नाश थायछे, तरवार पोतानी मेळे उंची थइ मारवानी क्रिया करी शकती नथी, कारण के ते कत्तथी प्रवर्तछे माटे परतंत्रछे. तेम कर्म इश्वरना ताबामा रही प्रवर्तता होय तो प्रथम जीवोने इश्वरे कर्म लगाडयां एम कहीएतो पहेला जीव कर्मरहीत हता. त्यारे तेमने शा माटे कर्म लगाड्यां ? कंइपण अपराध विना कर्म लगाड्याथी इश्वर अन्यायी पातकी ठरे. वळी कर्मरहीत पहेला जीवो हता तेओने कर्म लगाडवाथी इश्वर प्रभुन शुं कल्याण थवान हतुं अलबत कंइ नही, बळी इश्वरनामां जीवोने कर्म लगावानी शक्ति नित्यछे के अनित्यछे, जोते कर्म लगाडवानी शक्तिने नित्य मानीए तो सदाय इश्वरजीवोने कर्म लगाया करशे. जीवो कदी कर्मरहीत यशे नहीं. तो प्रभुने भजवू इत्यादि सर्व व्यर्थ कल्पना मात्र थइपडे. वळी इश्वरमा कर्म लगाडवानी शक्ति अनित्यछे एम कहीए तो अनित्य शक्तिना आधारी भूत इश्वरपण अनित्य ठरेछे, निराकार साकार इश्वर मानवामां को प्रमाण नथी. निराकार इधर सिध्धने मानतां निराकार इधरने कोइपण जातनी इच्छा नथी तेथी ते कर्म लगाइवानी उपाधिमां केम पडे.
वळी निराकार इश्वरने जो इच्छा कहीए तो इच्छा अधुराने होयछे, पण पूर्गने होती नथी. इच्छा मानवाथी इश्वरनी पूर्णतानो
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