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परमात्मदर्शन,
1११५) राखेछे त्यारे मुनीश्वर अंतर्धन उपर ममता राखेछे. क्या मेरु अने क्यां सरसवनो दाणो, क्यां सागर अने क्या तळाव, क्यां रात्रि अने क्या दिवस एटलो तफावत आत्मज्ञानी मुनीश्वर अने राजा बच्चे जाणवो. दुनियामां आत्मज्ञानी मुनिसदृश अन्य कोइ सुखी नथी, शेठ, वकील, बारीष्टरादि लोको तत्त्वथी विचारतां सत्य सुख भोगवता नथी. सत्य सुखनी प्राप्ति तो आत्पज्ञानीने थायछे. अंत. दृष्टिना अभावे बाह्यदृष्टिजीवो सत्य मुस्खनो अनुभव करी शकता नथी. आत्मज्ञानी मुनि सदा निर्भय रहेछे, अहो ते जीवता जीवन्मुक्तनी दशाने अनुभवेछे. आत्मज्ञान विना खंडनमंडननी विद्वताथी आत्महित यतुं नथी. दुनीया ज्यारे परपरिणतिमा म्हालेछे त्यारे मुनीश्वर स्वपरिणतिमा म्हालेछे. आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पश्यति
आ वाक्यनो अनुभव पण आत्मज्ञानी मुनीश्वर करी शकेले. शुष्कज्ञानी जीवो वाक्पटुताथी आत्मज्ञानीनो डोळ भले बतावो पण तेना अनुभवथी थतुं सुख ते पामी शकता नथी. आत्माना केवल ज्ञानादिगुणोनी प्राप्ति आत्मार्थिने थायछे. ___ संसारी जीवने ज्ञान दर्शन चारित्रादिक ऋद्धि सर्व तिरोभावे छे. ते तिरोभाव ऋद्धिनो आविर्भाव थाय, तेज आत्मानुं परमात्म पद जाणवू. ते परमात्मनो हुँ दास एटले उपासकछु ते परमात्मपद जेणे ओळख्युं अने परमात्मपदमां जेनुं एकाग्र चित्तथी ध्यान वर्तेछे. तेने साधुपद ग्रह्य एम जाणवू. अने शुद्धज्ञान पण ते पाम्यो एम जाणवू. नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव ए चार निक्षेपे साधु जाणवा. ___ कोइनु साधु एवं नाम ते नाम साधु, स्थापना करीए ते स्थापना साधु तथा जे पंचमहाव्रत पाळे क्रियानुष्ठान करे शुद्ध आहार ग्रहण करे पण ज्ञान ध्याननो जेवो उपयोग जोइए तेवो उपयोग न
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