Book Title: Paramarsh Jain Darshan Visheshank
Author(s):
Publisher: Savitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
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मनोज कुमार तिवारी
संदर्भ एवं टिप्पणियाँ १. तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि टीका (पूज्यपाद), ८/१
मिच्छंतं वेदंतो जीवो विवरीदयंसणो होदी। सा य धम्मं रोचेहि हु महुरं खु रसं जहा जरिदो। १/१७ गोम्मटसर (जीव काण्ड) जैन, जे. एल., दी सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाऊस, अजितआश्रम, लखनऊ, १९२७। जैन, सागरमल, गुणस्थान सिद्धांत : एक विश्लेषण, पार्श्वनाथ विद्यापीठ,
वारणसी, १९९६, पृ. ५३ ४. सम्मत्तमिच्छपरिसामेसु जहिं आउगं पुरा बद्धं।
तहिं मरसां समुग्धादो वि य सा मिस्सम्मि। २४ गोम्मटसर (जीव काण्ड) जैन, जे. एल., दी सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाऊस,
अजितआश्रम, लखनऊ, १९२७) कदककफलजुदजलं वा सरए सरवारियं व शिम्मलयं। सयलोवसंतमोहो उबसंतकसायओ होदि। ६१, गोम्मटसर (जीव काण्ड) जैन, जे. एल., दी सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाऊस, अजितआश्रम, लखनऊ,
१९२७ ६. ज्ञानसार त्यागाष्टक, दर्शन एवं चिन्तन, पं. सुखलाल संघवी, पृ. २७५
ज्ञानभूमिः शुभेच्छाख्या प्रथमा समुदाहृता। विचारणा द्वितीया तु तृतीया तनुमानसा। योगवासिष्ठ ३/११८/५ सत्त्वापत्तिश्चतुर्थी स्यात्ततोऽसंसक्तिनामिका। पदार्थाभावनी षष्ठी सप्तमी तुर्यगा स्मृता। योगवासिष्ठ ३/११८/६ स्थितः किं मूढ एवाऽस्मि प्रेक्ष्येऽहं शास्त्रसज्जनैः। वैराग्यपूर्वमिच्छेति शुभेच्छेत्युच्यते बुधैः। योगवासिष्ठ ३/११८/८ शास्त्रसज्जनसम्पर्कवैराग्याभ्यासपूर्वकम्। सदाचारप्रवृत्तिर्या प्रोच्यते सा विचारणा। योगवासिष्ठ ३/११८/९ विचारणा शुभेच्छाभ्यामिन्द्रयामिन्द्रियार्थेष्वसक्तता। याऽत्र सा तनुताभावात् प्रोच्यते तनुमानसा। योगवासिष्ठ ३/११८/१० भूमिकात्रितयाभ्यासाच्चित्तेऽर्थे विरतेर्वशात्। सत्यात्मनि स्थितिः शुद्धे सत्त्वापत्तिरूदाहृदा।। योगवासिष्ठ ३/११८/११

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