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अनिल कुमार तिवारी
संदर्भ एवं टिप्पणियाँ लक्ष्मी मल्ल सिंघवी (Former High Commssioner of india to UK)
ने विश्व वन्यजीवन फंड (World wildlife Fund) के संरक्षण और धर्म पर _अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क (International Network on Conservation and
Religion) के लिए प्रकृति पर जैन उद्घोषणा (The Jain Declaration on Nature) शीर्षक से एक लेख लिखा था जिसमें जैन दर्शन की पांच बातों का उल्लेख किया है जिनका पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष महत्त्व है। ये बाते हैं : अहिंसा (Non Violence), परस्परनिर्भरता (Inter-depence) अनेकान्तवाद (The Doctrine of Manifold Aspects), समत्व (Equanimity) और जीव दया (Compassion, Empathy and Charity) यह लेख वेबसाईट http://www.jainworld.com/jainbooks/ books/jaindecl.htm/(retrieved on octo6. 2006) पर उपलब्ध है। प्रस्तुत सूक्त इसी लेख में उद्धृत है। श्वेताम्बर जैन परम्परा के चार मौलिक सूत्र है -आवश्यक सूत्र, विशेष आवश्यवक सूत्र, दशवकालिक सूत्र और पाक्षिक सूत्र। इनमें आचार विचार के नियमों का विस्तृत उल्लेख है। उद्धृत सूत्र कस्तूर चन्द लालवानी द्वारा अनुदित दसवेयालिय सुत्त, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली, १९७३, से लिए गये हैं। अनेकान्त सिद्धान्त को वाद कहने पर विवाद है। यह अपने आप में कोई वाद नहीं है बल्कि यह दर्शाता है कि सभी वाद सीमित दृष्टिकोण है और परिप्रेक्ष्य विशेष में ही सत्य हैं न कि निरपेक्ष रूप से। बौद्ध दर्शन का शून्यता सिद्धान्त इसका निषेधात्मक रूप प्रतीत होता है। शून्यता समस्त दृष्टियों में विरोधाभास दिखाकर उनका खंडन करती है परन्तु यह स्वयं में कोई दृष्टि या मत नहीं है। अनेकान्त समस्त दृष्टियों में सापेक्षिक सत्य देखता है परन्तु स्वयं किसी दृष्टि विशेष के अन्तर्गत नहीं आता। इस तरह शून्यता और अनेकान्त कसौटी हैं न कि कसौटी के विषय इसलिए इन्हें वाद कहना एक उपचारमात्र प्रतीत होता
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तर्करहस्यदीपिका आचार्य गुणरत्न द्वारा हरिभद्रसूरि कृत षड्दर्शनसमुच्चय पर टीका है। प्रस्तुत विचार Jadunath Sinha की Indian Philosophy, Vol