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पुस्तक-समीक्षा
आलोक टण्डन
दर्शन के सरोकार, लेखक डा0 सरोज कुमार वर्मा, अमिधा प्रकाशन मुजफ्फरपुर, २०१२, पृ०-१२८, मू०-२००/
आम शिकायत है कि आज दर्शन शास्त्र जीवन और जगत की समस्याओं से विमुख होकर भाषा और तार्किक विश्लेषण की गलियों में भटक गया है। ऐसे में डा0 सरोज कुमार वर्मा की पुस्तक 'दर्शन के सरोकार' एक सुखद हवा के झोंके की तरह है। इसमें संकलित बारह निबन्ध उनकी इस पूर्व-मान्यता की पुष्टि करते हैं कि दर्शन 'जिन्दगी को उसकी सम्पूर्णता और गहनता में छूने-परखने का आग्रह करता है।' उनकी स्थापना है कि आज पूरी दुनिया और दुनिया के सारे मनुष्य जिन अन्तर्विरोधों से जूझ रहे हैं, उसके बीज दर्शन में ही छुपे हुये हैं और इसलिये उन अन्तर्विरोधों को दूर करने के सूत्र भी दर्शन में ही तलाशने होंगे। आइये देखें कि अलग-अलग सन्दर्भो में लिखे गये ये निबन्ध आज के वक्त के अन्तर्विरोधों को पकड़ कर, विश्लेषित करने और उन्हें दूर करने के सूत्र तलाशने में कहाँ तक सफल हो पाये हैं।
लेखक का यह दावा उचित ही जान पड़ता है कि इन लेखों में काल-भिन्नता के बावजूद तत्त्व-भिन्नता नहीं है। अलग-अलग विषयों पर लिखे जाने के बावजूद इनकी पृष्ठभूमि में वैचारिक स्थापना एक ही है। सभी लेखों के सांगोपांग विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक दर्शन में आध्यात्मिक दृष्टि का समर्थक है और भौतिकवाद का विरोधी। इतना ही नहीं, वह आज के मनुष्य की समस्याओं के मूल में भौतिकवाद की विश्व दृष्टि और जीवन दृष्टि को चिन्हित करता है। तकनीक समर्थित आधुनिक विकास की अवधारणा को तद्जन्य हिंसा, पर्यावरण संकट और उपभोक्तावाद के आधार पर प्रश्नांकित करता है और प्राचीन भारतीय नैतिक आदर्श प्रणाली-पुरुषार्थ की अवधारणा के सहारे वर्तमान अन्तर्विरोधों का हल प्राप्त करने की वकालत करता है।
संग्रह का पहला ही लेख 'भौतिकवाद बनाम अध्यात्मवाद' पर है। इसमें उन्होंने दर्शन के दो आधारभूत सिद्धान्तों - भौतिकवाद और अध्यात्मवाद की तत्त्व मीमांसीय, ज्ञान मीमांसीय और नीति मीमांसीय स्थापनाओं का स्पष्ट विवेचन और तुलनात्मक परामर्श (हिन्दी), खण्ड २८, अंक १-४, दिसम्बर २००७-नवम्बर २००८, प्रकाशन वर्ष अक्तुबर २०१५