Book Title: Paramarsh Jain Darshan Visheshank
Author(s): 
Publisher: Savitribai Fule Pune Vishva Vidyalay

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Page 171
________________ लेखकों हेतु निर्देश • परामर्श (हिन्दी) चिंतनपरक वैचारिक पत्रिका है। इसमें विशुद्ध चिंतनपरक व दार्शनिक दृष्टिकोण के लेख स्वीकृत होंगे। लेख की स्वीकृति परीक्षक संपादकों के निर्णय पर निर्धारित होगी। अस्वीकृत लेखों के निर्णय की सूचना दी जायेगी। संपादकों का प्रकाशित सामग्री से सहमत होना अनिवार्य नहीं है। प्रकाशित लेखों पर प्रतिक्रियात्मक वैचारिक टिप्पणियाँ भी स्वागतयोग्य हैं। यथायोग्य होने पर वे प्रकाशित की जा सकती हैं। • पत्रिका में प्रकाशित सामग्री का स्वामित्व अधिकार पत्रिका का होगा। अन्यत्र पूर्व-प्रकाशित लेख पत्रिका में प्रकाशन हेतु स्वीकार्य नहीं होंगे। पत्रिका में अपनी पुस्तक के विज्ञापन हेतु प्रधान सम्पादक को लिखें। • शोध-पत्र लेख की शब्दसीमा २००० से ५००० शब्द के बीच होनी चाहिये। लेख का फॉन्ट Kruti Dev ०१० आकार १४, Normal, अंग्रेजी फॉन्ट Times New Roman आकार १२, Normal एवं पंक्तियों के मध्य स्थान १.५ होनी चाहिये। संदर्भ एवं टिप्पणियाँ लेख के अन्त में एक अलग पृष्ठ पर दें। कृपया संदर्भ का पूर्व विवरण दें। संदर्भ इस प्रकार रखें : लेखक का नाम (उपनाम से प्रारंभ करते हुये), पुस्तक का शीर्षक (italic में), प्रकाशक, प्रकाशन-स्थान, प्रकाशन-वर्ष, पृष्ठसंख्या। पादटिप्पणियों को लेख के अंत में 'संदर्भ एवं टिप्पणियाँ' के अन्तर्गत रखें। यदि संदर्भ किसी जर्नल का है तो क्रमानुसार लेखक का नाम, लेख का शीर्षक, जर्नल का नाम (italic में), अंक सं, वर्ष, पृष्ठ सं. अंकित करें। • लेखक अपना विवरण (नाम, पद, संस्थागत सम्बद्धता, पत्रव्यवहार का पता, फोन नं, ईमेल) एक अलग पृष्ठ पर लेख के अंत में दें। • लेखक को सुझाव है कि लेख भेजने से पूर्व लेख की भाषा, वाक्य-विन्यास, मात्रा आदि सम्बंधी अशुद्धियों को जाँच लें ताकि समय की बचत हो सके। लेख की एक soft copy MS Word Format में निम्नलिखित ईमेल पते पर प्रेषित करें ipq1973@unipune.ac.in • लेख की दो Hard Copies इस पते पर भेजें प्रधान सम्पादक, 'परामर्श' (हिन्दी) दर्शनशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे- ४११००७ सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के लिये प्रधान संपादक सुरजीत कौर चहल ने यह त्रैमासिक सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय मुद्रणालय में छपवाकर प्रसिद्ध किया।

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