Book Title: Paramarsh Jain Darshan Visheshank
Author(s): 
Publisher: Savitribai Fule Pune Vishva Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ पूर्णेन्दु भोखर बेवश कर दिया है, लेखक उस मूर्च्छा एवं तंद्रा को भंग करने का मंत्र देते हैं- 'हम अनुकरण को अभिशप्त नहीं हैं, जिसकी गूंज गांधी के हिन्द स्वराज में शताब्दी पूर्व सुनी जा सकती है। बेलगाम भोगवादी प्रवृत्ति, स्वार्थवादी प्रवृत्ति, सुविधापरस्ती ने कहीं हमें प्रौद्योगिकी का गुलाम तो नहीं बना दिया है? मनुष्य के मात्र 'व्यक्तित्वहीन उपभोक्ता' में तब्दील हो जाने की चिंता लेखक को इस पर विमर्श करने के लिए भीतर तक झकझोरती है। इसलिए लेखक प्रौद्योगिकी की प्रकृति से ही इस विमर्श की शुरूआत करते हैं। लेखक का मानना है कि यह अब एक विचारधारा बन गई है । ( 1 ) वे लिखते हैं कि 'अब यह एक सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है।' (पृ 6) यह किसी एक ही मांग को सृजित नहीं करती, बल्कि विविध मांग को बार-बार सृजित एवं विस्तारित करती है। लेखक को लगता है कि इस स्थिति से उबरने के लिए चिंतन का आकाश खोलना आवश्यक है। निर्णयवाद, निर्माणवाद एवं अनिर्णयवाद इन तीन दृष्टियों को प्रौद्योगिकी के उपर विचार के लिए लेखक महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल करते हैं। निर्णयवादी दृष्टि वैकल्पिक भविष्य की संभावना को ही नकार देती है । भविष्य निर्माण का द्वार निर्माणवाद में खुलता दीखता है लेकिन कई विकल्पों में से किसी एक का ही चयन सामाजिक कर्त्ता द्वारा हो पाता है । अनिर्णयवादी दृष्टि से विचार करने पर प्रौद्योगिकी की वैकल्पिक संभावनाओं का बेहतर मार्ग खुलता दीखता है। चूंकि लेखक को लगता है कि यह तकनीकी एवं सामाजिक दोनों तरह 1 कारकों से प्रभावित होती है। अतः प्रौद्योगिकी समाज का निर्धारक नहीं हो सकता है । कोई प्रौद्योगिकी सामाजिक मूल्यों से संगत होकर ही सामाजिक प्रभुत्त्व प्राप्त कर सकती है। तर्कबुद्धिपरकता आधुनिकता का चरम सांस्कृतिक मूल्य है । परंतु लेखक को लगता है कि तकनीकी बुद्धिपरकता सार्वभौमिक नहीं अपितु पूंजीवाद की एक विशेषता मात्र हैं। लेकिन (1) सामाजिक कार्य और (2) सामाजिक क्षितिज प्रौद्योगिकी के चयन की सापेक्षता को उजागर करने में सहयोगी होगा। यहां पर लेखक के द्वारा हाइडेगर की चुनौती देने वाली (चैलेंजिंग फोर्थ ) एवं प्रकटीकरण करने वाली (बृगिंग फोर्थ) प्रौद्योगिकी की चर्चा रोचक लगती है। इस क्रम में हाइडेगर विकल्प की तलाश में कब मानवीय कर्तृत्व को कम करके आंकने लग जाते हैं शायद हाइडेगर को ज्ञात नहीं हो पाता है। १५८ लेखक की सफलता इस बात को स्थापित करने में दिखती है कि प्रौद्योगिकी का विकास पूंजीवादी वातावरण में हुआ है; जिसका उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना है; और जिसके लिए समस्त सामाजिक जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना तथा ऐच्छिक उद्देश्य की पूर्ति एवं प्राप्ति में अनैच्छिक परिणाम को नजरअंदाज कर दिया जाना इसकी विशेषता है। फलस्वरूप प्रौद्योगिकी एक वर्ग विशेष का प्रभुत्त्व कायम करने वाला अस्त्र बन जाता है। लेखक को इस प्रभुत्त्व को चुनौती देने

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172