Book Title: Paramarsh Jain Darshan Visheshank
Author(s): 
Publisher: Savitribai Fule Pune Vishva Vidyalay

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Page 146
________________ १४० सचिन्द्र जैन अंग आ जाते हैं। मनोवर्गणा के परमाणुओं से निर्मित उस भौतिक रचना तंत्र में प्रवाहित होने वाली चैतन्यधारा भावमन है। दूसरे शब्दों में इस रचना तंत्र को आत्मा से मिली हुई ज्ञान, वेदना एवं संकल्प की चैतन्य शक्ति ही भावमन है। मन का स्थान एक प्रश्न यह भी उठता है कि द्रव्यमन और भावमन शरीर के किस भाग में स्थित हैं? द्रव्यमन की दो अवधारणाएँ हैं- दिगम्बर परंपरा के अनुसार द्रव्यमन मनोवर्गणा के पुद्गलों से बना हुआ है, इसकी आकृति आठ पखंडी वाले कमल जैसी है। यह वीर्यान्तराय एवं नो इन्द्रियावरण के क्षयोपक्षम तथा नामकर्म के उदय से होता है। इस द्रव्यमन का स्थान हृदय है। श्वेताम्बर परंपरा में हृदय कमल वाली मान्यता नहीं है। उनके अनुसार मननकाल में बननेवाली मनोवर्गणा के पुद्गलों की आकृतियाँ ही द्रव्यमन है। इस प्रकार उनका स्थान हृदयमात्र हो- यह प्रतीत नहीं होता। जहाँ तक भावमन का प्रश्न है उसका स्थान आत्मा ही है, क्योंकि आत्मप्रदेश समस्त प्रदेश में व्याप्त है। जहाँ-जहाँ चैतन्य की अनुभूति होती है वहाँ वहाँ भावमन अपना आसन बिछाए हुए है। इस प्रकार भावमन का स्थान सम्पूर्ण शरीर ही सिद्ध होता है। मन का कार्य मनन करना मन है अथवा जिसके द्वारा मनन किया जाता है वह मन है। (मननं मन्यते अनेन वा मनः) इस व्युत्पत्ति के आधार पर मन का कार्य मनन-चिंतन वह इन्द्रिय जन्य ज्ञान में निमित्त तो बनता ही है इन्द्रिय निरपेक्ष, इच्छा, द्वेष, सुख, दुख आदि की अनुभूति में भी कारणीभूत है। जैन दर्शन में इच्छा, द्वेष, प्रयत्न आदि आत्मा की वैभाविक परिणतियाँ है अतः भावमन से उनकी ज्ञप्ति में कोई असंगति प्रतीत नहीं होती। जैन विचारणा में बन्धन के लिए अमूर्त आत्म तत्त्व और जड कर्म का जो सम्बन्ध स्वीकृत है। उसके व्याख्या के लिए मन के स्वरूप का यही सिद्धान्त अभिप्रेत हैं, अन्यथा जैन दर्शन की बंधन और मुक्ति की अवधारणा ही असम्भव होगी। जड़ और चेतन के मध्य सम्बन्ध मानने के कारण मन को उभयरूप मानना आवश्यक है। जैन विचार में मन उभयात्मक होने के कारण ही जड कर्म वर्गणा और चेतन आत्मा के मध्य योजक कडी बन गया है। मन की शक्ति चेतना में है और उसका कार्यक्षेत्र- भौतिक जगत् है। जड पक्ष की ओर से वह भौतिक पदार्थों से प्रभावित होता है और चेतन पक्ष की ओर से आत्मा को प्रभावित करता है। इस प्रकार जैन दार्शनिक मन के द्वारा आत्मा और जड तत्त्व के मध्य अपरोक्ष सम्बन्ध

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