________________
अनेकान्तवाद : सर्वसमावेशी सांस्कृतिक सहभाव का दर्शन
बालेश्वर प्रसाद यादव
१.प्रस्तावना
विश्व के सम्पूर्ण देशों में विभिन्न संस्कृतियों की अनेक धाराएँ अनादि काल से प्रवाहित होती चली आ रही हैं। भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत भी न जाने कितनी चिन्तनधाराएँ प्राचीन से लेकर आज तक अनवरत गतिमान होती हुई विद्यमान हैं। विभिन्न चिन्तनधाराओं के परस्पर भेदोपभेद एवं तन्त्रात्मक वैभिन्य के बावजूद इनका सहभाव (सह-अस्तित्व) अत्यन्त ही विषेशोपम एवं द्रष्टव्य है। प्राचीन आर्यावर्त की भूमि पर उद्भूत होने से लेकर वर्तमान भारत तक पल्लवित एवं पुष्पित विभिन्न संस्कृतियों को दो भागों में प्रमुख रूप से विभाजित किया जा सकता है, जो हैंवैदिक एवं अवैदिक परम्परा की संस्कृतियाँ। ये दोनों संस्कृतियाँ क्रमश : ब्राह्मण एवं श्रमण परम्परा के रूप में अभिज्ञात हैं। ब्राह्मण परम्परा का प्रवाह वेदों एवं उपनिषदों से प्रारम्भ होकर नाना पुराणों, रामायण, महाभारत एवं आस्तिक सम्प्रदाय के षड्दर्शनों से होते हुए आधुनिक हिन्दू धर्म की परम्परा एवं संस्कृति तक प्रस्तृत है। श्रमण परम्परा भी उतनी ही प्राचीनता लिए हुए जैन, आजीवक, चार्वाक एवं बौद्ध दर्शन के विभिन्न सम्प्रदायों से होते हुए इनके अद्यतन परिवर्तित रूपों में परिलक्षित होते हैं। ब्राह्मण एवं श्रमण चिन्तनधारा की तत्त्वमीमांसा के प्रभेदक पृथक्-पृथक् रहे हैं। इसी प्रकार इनकी ज्ञानमीमांसा एवं आचारमीमांसा में भी पर्याप्त भिन्नताएँ रही हैं। इन चिन्तनधाराओं के अन्तर्गत भी स्वयं के अन्तर्विरोध एवं तदनुरूप तत्त्वमीमांसीय, ज्ञानमीमांसीय एवं आचारमीमांसीय भिन्नताएँ अत्यन्त ही उत्कट रूप में परिलक्षित होती हैं। इन्हीं चिन्तनधाराओं के अन्तर्गत श्रमण परम्परा में परिगणित जैन दर्शन में जिस प्रकार की, तत्त्वमीमांसा का विकास हुआ है उससे तत्त्व के बहुत्ववादी होने का प्रमाण उपलब्ध होता है। इसे ही जैन दर्शन में 'अनेकान्तवाद' नाम के विशिष्ट दार्शनिक पद से अभिहित किया जाता है। वैसे तो इस पद को जैन दर्शन में केवल तत्त्व की संख्यात्मक एवं गुणात्मक विषेशताएँ बताने के कारण ही चिन्हित किया गया है, परन्तु इसकी सम्पूर्ण अर्थवत्ता इसे तब प्राप्त होती है जब इसका प्रयोग इस दर्शन की ज्ञानमीमांसीय एवं आचारमीमांसीय परिप्रेक्ष्यों में भी होता है। अनेक तत्त्वों के अस्तित्व को स्वीकार करने के कारण यह दर्शन अनेकान्तवादी है। इसके परामर्श (हिन्दी), खण्ड २८, अंक १-४, दिसम्बर २००७-नवम्बर २००८, प्रकाशन वर्ष अक्तुबर २०१५