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जैन परंपरा में पर्यावरण
करता है कि उसका अमुक कृत्य किस ढंग का प्रभाव उत्पन्न करेगा। कम से कम वह यह अवश्य सोचता है कि इस कृत्य का स्वयं उसके ऊपर या मानवजाति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। परन्तु जैसा कि पहले कहा गया है उसके ज्ञान का दायरा सीमित है
और इस बात की पूरी सम्भावना रहती है कि वह दूरगामी प्रभावों की गणना न कर सके। दूसरी बात यह कि व्यक्ति अपने सीमित ज्ञान के आधार पर कार्य करने की प्रवृत्ति रखता है, कम-से-कम ऐसे ज्ञान को क्रियान्वित करने में जो उपयोगी है तथा भौतिक सुख उत्पन्न करता है। मानव जीवन को सुख और सुविधा सम्पन्न बनाने के लिए ही विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। परन्तु सुख और सुविधा जुटाने की लालसा ने प्रकृति पर गम्भीर असर डाला है और आज हमारे समक्ष पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है। क्या हम इसे प्रकृति के विरुद्ध की गयी हिंसा कह सकते हैं? अहिंसा
जैन विचार परम्परा में अहिंसा का महत्त्व इसी बात से समझा जा सकता है कि यह प्रायः असम्भव है कि अहिंसा की चर्चा हो और जैन परम्परा का नाम दिमाग में न आये। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी पर इस मत का विशेष प्रभाव दिखायी देता है। इससे यही सिद्ध होता है कि अहिंसा का सिद्धान्त जैन परम्परा की विशेष पहचान है। स्वामी महावीर का कहना है कि अहिंसा से सूक्ष्म और जीवन के प्रति सम्मान से उत्तम आत्मा में कोई अन्य गुण नहीं है।' स्पष्ट हैं कि अहिंसा की अवधारणा जैन परम्परा की आत्मा है। यह अवधारणा उसके जीव विषयक सिद्धान्त पर आधारित है। जैन दर्शन में जीव शब्द को अनेक अर्थों में प्रयोग किया गया है, जैसे - प्राणी, चेतना, आत्मा। इसे सारतः सांख्य दर्शन के पुरुष के निकट समझना चाहिए। जीवों की संख्या अपरिमित है। समस्त जीव अनन्तचतुष्टय- अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य एवं अनन्त आनंद से युक्त है तथा पूर्वजन्म के कर्मफल (कर्मपुद्गल) के अनुसार विभिन्न शरीरों से सम्बद्ध होते हैं। जैसे -मानव शरीर, पशु शरीर, पेड पौधे एवं सूक्ष्म जीवाणु इत्यादि। शरीर की क्षमता के अनुसार उसमें जीव-शक्ति की अभिव्यक्ति होती है। जैन परम्परा में शरीर की क्षमता का आकलन ज्ञानेन्द्रियों की संख्या के आधार पर किया गया है। सबसे सूक्ष्म शरीर वाले जीवों, जिन्हें स्थावर कहा जाता है इनमें केवल एक ज्ञानेन्द्रिय होती है और वे पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि तथा वनस्पति में निवास करते हैं। अन्य जीवों को त्रस कहते हैं। मनुष्य, पशु, पक्षी