Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 21
________________ २० પ્રસ્તાવના અહીં જણાવેલ જ્યોતિકરકર્તા પાદલિપ્તસૂરિ આદિના સંબંધમાં, પ્રસ્તુત ગ્રંથના સંપાદકજીએ, ઈ. સ. ૧૯૬૧માં શ્રીનગર (કાશ્મીર)માં મળેલી ‘અખિલ ભારતીય પ્રાચ્યવિદ્યા परिषना 'प्राकृत मने नैनधर्म विभाग'ना अध्यक्षस्थानेथा यापेक्षा " जैन आगमवर और प्राकृत वाङ्मय ” शीर्ष अभिलाषशुभां भणावेसी हुडीम्त नीये प्रमाणे छे :– " पादलिप्ताचार्य (वीरनिर्वाण संवत ४६७ के आसपास ) - इन आचार्यने तरंगवई नामक प्राकृतदेशी भाषामयी अतिरसपूर्ण आख्यायिकाकी रचना की है. यह आख्यायिका आज प्राप्त नहीं है। किन्तु हारिजगच्छीय आचार्य यश (?) रचित प्राकृत गाथाबद्ध इसका संक्षेप प्राप्त है. डा० अर्न्स लॉयमानने इस संक्षेपमें समाविष्ट कथांशको पढ़कर इसका जर्मन में अनुवाद किया है. यही इस आख्यायिकाकी मधुरताकी प्रतीति है. दाक्षिण्यांक उद्योतनसूरि, महाकवि धनपाल आदिने इस रचनाकी मार्मिक स्तुति की है. इन्हीं आचार्यने ज्योतिष्करंडक शास्त्रकी प्राकृत टिप्पनकरूप छोटी सी वृत्ति लिखी है, इसका उल्लेख आचार्य मलयगिरिने अपनी सूर्यप्रशतिवृत्ति में (पत्र ७२ व १०० ) और ज्योतिष्करंडक - वृत्ति (पृष्ट ५२, १२१, २३७) किया है. यद्यपि आचार्य मलयगिरिने ज्योतिष्करंडकवृत्तिको पादलिप्साचार्य निर्मित बतलाया है किन्तु आज जैसलमेर और खंभातमें पंद्रहवीं शती में लिखी गई मूल और वृत्तिसहित जो हस्तप्रतियाँ प्राप्त हैं उन्हें देखते हुए आचार्य मलयगिरिके कथनको कहाँ तक माना जाय, वह मैं तज्ज्ञ विद्वानों पर छोड़ देता हूँ. उपर्युक्त मूलग्रन्थ एवं मूलग्रन्थसहित वृत्तिके अंतमें जो उल्लेख हैं वे क्रमशः इस प्रकार हैं : कालपणाणसमासो पुव्वायरिएहिं वण्णिओ एसो । दिणकर पण्णत्तीतो सिस्सजणहिओ सुहोपायो || पुव्वायरियकयाणं करणाणं जोतिसम्मि समयम्मि । पालित्तण इणमो रइया गाहाहिं परिवाडी || ज्योतिष्करण्डकप्रान्तभाग. ॥ काण्णा समासोपुव्वायरिएहिं नीणिओ एसो । दिणकर पण्णत्तीतो सिस्सजणहिओ पिओ..... पुव्वायरियकयाय नीतिसमसमएणं । पालित्तकेण इणमो रइया गाहाहिं परिवाडी || ॥ णमो अरहंताणं ॥ कालण्णाणस्सिमो वित्ती णामेण चंद [ १ लेह ] त्ति । सिवनं दिवायगेहिं तु रोयिगा (रइया) जिणदेवगतिहेतूणं (? गणिहेतुं ) | Jain Education International ॥ ग्रं० १५८० ॥ – ज्योतिष्करण्डकवृत्ति प्रान्त भाग ॥ इन दोनों उल्लेखोंसे तो ऐसा प्रतीत होता है कि-मूल ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णकके प्रणेता पादलिप्ताचार्य हैं और उसकी वृत्ति, जिसका नाम 'चन्द्र[लेखा]' है, शिवनन्दी वाचककी रचना है, आचार्य मलयगिरिने तो सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति में एवं ज्योतिष्करण्डकवृत्तिमें इस वृत्तिके प्रणेता पादलितको कहा है. संभव है, आचार्य मलयगिरि के पास कोई अलग कुलकी प्रतियाँ आई हों जिनमें मूलसूत्र और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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