Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 130
________________ जोइसकरंडगं ['दिवसाणं वडि'त्ति एगूणवीसइमं पाहुडं समत्तं. १९] [२०-२१. 'अवमासि-पुण्णमासि'त्ति पाहुडाई] राति-दियप्पमाणं एतं भणितं तु करणविधिदिटुं । अवमास पुण्णमासिं एत्तो वोच्छं समासेणं ॥ ३३४॥ बावट्ठी अवमासा जुर्गम्मि, बावट्ठि पुण्णिमाओ वि । णक्खत्तखेत्तवेलाण तिण्णि ताणि प्पमाणाणि ॥ ३३५॥ णोतुमिह अमावासं जदि इच्छति, कम्हि होति रिक्खे १ ति। अवहारं थावेजा तत्तियरूवेहिं संगुणए ॥ ३३६ ॥ छावट्ठी य मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य पंच पडिपुण्णा । बावट्ठिभागसत्तट्ठिमो य एक्को हवति भाओ ॥ ३३७॥ एतस्स अवहाररासिणो णिप्फत्ती जहा-चउव्वीसेण पव्वसतेण १२४ लब्भंते जदि पंच ५ सूरणक्खत्तपज्जया सूरपव्वं च चंदपव्वं च त्ति बेहिं पव्वेहिं किं लब्भामो ? त्ति फले संकेते अद्धेण ओवट्टिते लद्धा पंच बावट्ठिभागा ५, णक्खत्ताई काहामो ति अट्ठारस सयाइं तीसाणि सत्तद्विभागाणं १७° परतो थाविताणि, "अंसेहिं गुणच्छेदा छेदेहिं संगुणा णियम "त्ति अंसाणं दिट्ठाणि एक्काणउतिं सयाणि पण्णासाणि ९१५०, छेदो एक्कचत्तालीसं सया चउप्पण्णा १. इयं गाथा जे० ख० आदर्शयोरेव दृश्यते॥ २. इयं गाथा हं० पु० मु० वि० म० नास्ति । ३. गम्मि तह पुण्णिमा वि बावट्ठी। नक्ख° जे० खं०॥ ४. ला तु णीणिताइं पमाणाई जेटि. खंटि०॥ ५. नाउमिह अमावासं जइ इच्छसि, कम्मि होइ रिक्खम्मि?। पु० मु०। नातुं इह अवमासाउ इच्छति एगम्मि होज नक्खत्तं। अवहारे ठावेज्जा ततिहिं व रूवेहिं संगुणए ॥ जे० खं०॥ ६. एतदनन्तरं जेटि० खंटि० आदर्शयोरियमधिका गाथा वर्ततेणक्खत्तचंदमासाण विसेसो इच्छ संगुणे णियमा । अवमासि पुण्णमासिं गुणसु ण[क्खत्त...] ॥ इति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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