Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 135
________________ पाययटिप्पणगसमेयं सत्तरस सए पुण्णे अट्ठढे चेव मंडले चरति । चंदो जुगेणं, सूरो सते तु अट्ठारस सतीसे ॥३५०॥ चंदो जुगेण सत्तरस मंडलसयाणि [अट्ठसट्ठाणि] १७६८ परीति । सूरो अट्ठारस मंडलसयाणि तीसाणि १८३० परीति ॥ ३५० ॥ तेरस य मंडलोई तेरस भागे सतट्ठिछेदकते । एतं तु अयणखत्तं णियतं सोमो तु जं चरति ॥३५१॥ एतस्स णिप्फत्ती-जदि चोत्तीसअयणसतेण १३४ सत्तरस सयाणि अट्ठसठ्ठाणि १७६८ चंदमंडलाणं लब्भंति एक्कण चंदायणेण कति मंडलाणि लब्भामो ? ति फले संकंते अद्धेण ओवट्टिते अट्ठण्हं सयाणं चुलसीयाणं ८८४ सत्तट्ठीय ६७ भागलद्धं तेरस मंडलाणि तेरस य सत्तट्ठिभाग ति १३१॥ ३५१॥ चोदेस य मंडलाणी बिसट्ठिभागा य सोलस हवेजा। मासद्धणं उडुवती एत्तियमेत्तं चरति खेत्तं ॥ ३५२ ॥ एकं च मंडलं मंडलस्सँ सत्तट्ठिभाग चत्तारि । णव चेव चुण्णियाओ इगतीसकतेण छेदेण ॥३५३ ॥ उपरि गाथायां विजयाय अर्थवशादियं गाथा। एतस्स णिप्फत्ती-जदि चउव्वीसेण पव्वसतेण १२४ सत्तरस चंदायणसताणि अट्ठसट्टाणि १७६८ लब्भंति १. °ण नियमा, सूरो अट्ठारस उ तीसे जे० ख० पु० मु० वि०॥ २. °लाणि तु ते° जे० ख०॥ ३. °स सत्तट्टि चेव भागा य। अयणेण चरइ सोमो नक्खत्तेणऽद्धमासेणं ॥ जे० खं० मु० म० वि० सू०॥ ४. इयं गाथा जेटि० खंटि० नास्ति । जे० खं० पु० मु० म० आदर्शेषु तु वर्त्तते ॥ ५. °लाई बि° पु० वि० मु०॥ ६. देणं उडुवति ए° पु० वि०॥ ७. °स्स चउरो भागा(?चउभाग) सत्तसटिकया। भागस्स य एकत्तीकयस्स भागेण चउ कुजा (?)॥ जे० खं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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