Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 132
________________ जोइसकरंडगं बावत्तरं सयं फग्गुणीयं, बाणउत बे विसाहासु । चत्तारि य बाताला सोज्झौ अध उत्तर/साढा ॥ ३४० ॥ Jain Education International एयं पुत्रस तु बिर्सेट्ठिभागसहितं तु सोधणगं । तो अभिजीआदी बितियं वोच्छामि सोधणगं ॥ ३४१ ॥ अभिस्सि नव मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य होंति चउवीसं । छावट्ठीय समत्ता भागा सत्तट्ठि छेदैगता ॥ ३४२ ॥ गुण पोवता ति चैव नैवुत्तरेसु रोहिणिओ । तिसु णवणते हवे पुणव्वसू फग्गुणीओ य ॥ ३४३ ॥ पंचैव अंगुणपण्णं सताई अंगुणुत्तराई छ चैव । सोज्झाणि विसाहासुं मूले सत्तेव चोताला || ३४४ ॥ असैय उगुणवीसा सोधणगं उत्तराणऽसाढाणं । चउवीसं खलु भागा छावट्ठि चुण्णिगाओ य ॥ ३४५ ॥ एताई सोहइत्ता जं सेसं तं हवेज्ज णक्खत्तं । ऐत्थं करेति उलुवति सूरेण सम अवामासं ॥ ३४६ ॥ १. 'णीण बा° जे० खं० पु० मु० म० वि० | २. उय बिसता विसा' जे० खं० ॥ ३. 'ज्झा जावुत्त' जे० खं० ॥ ४. सट्ठि[सहि]तं तु पढमसोध' जे० । 'सट्टिभागसहितं तु पढमसोध खं० ॥ ५. छेयकया जे० खं० पु० मु० म० सू० ॥ ६. इगुणटुं पो पु० मु० वि० । उक्कडो पो° जे० खं० ॥ ७. नवोत्तरेसु रोहिणिया हं० वि० पु० मु० सू० ॥ ८. व ऊणपण्णा सताण इकुणु जे० खं० ॥ ९. उ गुणवन्नं मु० सू० । य गुणवण्णं पुः ॥ १०. इगुणु पु० । उगुणु मु० सू० वि० ॥ ११. सयं गुणं पु० ॥ १२. जत्थ करेइ उडुवती जे० खं० ॥ १३. अमावासं पु० मु० वि० म० सू० ॥ ८९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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