Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 129
________________ ८६ पाययटिप्पणगसमेयं बाहिरतो णिक्खमंते आदिचे हवति बारसमुहुत्तो। दिवसो, अध रत्ती पुण होति उ अट्ठारसमुहुत्ता ॥३३०॥ पव्वं पण्णरसगुणं तिधिसंखित्तं बिसट्ठिभागूणं । तेसीतसतेण भैजे जं सेसं तं विजाणाहि ॥३३१॥ तं बिगुणमेगसट्ठीर्य भाजितं जं भवे तहिं लद्धं । तं दक्खिणम्मि अयणे दिवसाँ सोधे, खिवे रत्तिं ॥ ३३२॥ तं चेव य अयणे उत्तरम्मि दिवसम्मि होति पक्खेवो । रत्तीओ ओसटुं जाणसु राति-दियपमाणं ॥ ३३३॥ पव्वं पण्णरसगुणं तिधिसंखित्तं सुद्धमहोरत्तं तेसीतसया १८३ विहत्तं सेसं उत्तरायणं बावीसदिवससय १२२ दिटुं, एत्थ किं दिवसप्पमाणं ? किं च रातिप्पमाणं १ ति, बावीसातो सयातो १२२ बिगुणितातो एगट्ठीय ६१ लद्धा चत्तारि ४ मुहुत्ता, बाहिरतो पविसंते आदिच्चे रयणी अट्ठारसिया दिवसो बारसगो, एवं रयणीतो चत्तारि वोकसेता दिवसे बारसगे पक्खित्ता जातो सोलसगो दिवसो चोदसिगा राती। एवं सव्वत्थ उत्तरायणे। पुव्वकमेण तेणेव दिटुं दक्खिणायणस्स बावीसं दिवससया १२२ किं राति-दियप्पमाणं १ बावीसातो सतातो १२२ बिगुणातो एगट्ठीय लद्धा चत्तारि मुहुत्ता खय-वड़ी, अभंतरतो णिक्खमंतो आदिच्चो दिवसो अट्ठारसगो, राती बारसिगा य। लद्धा चत्तारि मुहुत्ता अट्ठारसगातो दिवसातो वोकसिय बारसिगरायीय पक्खित्ता जाया सोलसिगा राती, चोदसगो दिवसो ति। एवं सव्वत्थ दक्षिणायणे ॥३३१ ॥३३२॥३३३॥ १. निक्खते जे० खं० वि० पु० मु०॥ २. पुण बोधव्वाऽट्ठा जे० ख०॥ ३. पणरसगुणितं ति जे० खं०॥ ४. भते जे० खं०॥ ५. °णमेव सट्ठीए जे० खं० जेटि० खंटि. पु. मु०। किञ्च सटीकादशेष °मेकसट्रीय इति पाठदर्शनात तथा टिप्पनके 'एगहीय' इति मलयगिरिपादैः 'एकषष्टया' इति च व्याख्यानान्मूलगत एव पाठः साधुः॥ ६. °य विभत्ते जं जे० ख०॥ ७. °सा सोज्झा ण तं रत्तिं जे० खं०॥ ८, रत्तीतो वोकसितं जाणे रति-दिय जे० खं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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