Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 121
________________ पाययटिप्पणगसमेयं अत्थमणसंधिम्मि ? त्ति जम्हा दिवसादी अहोरत त्ति वयणं तम्हा अत्थमणसंधीहिं ति ॥ ३०८ ॥ ७८ ॥ विषं पाहुडं समत्तं १६ ॥ [१७. सत्तरसमं 'वतीवावे 'त्ति पाहुडं] अयणाणं 'संवेधे रवि- सोमाणं तु बेहित जुंगम्मि । जं वति भागद्धं वतिपाता तत्तिया होंति ॥ ३०९ ॥ बावत्तरीपैमाणं फलरासी, इच्छिते तु जुगभेदे | इच्छितवतिवापि य इच्छं कातूण आणेहि ॥ ३१० ॥ जं हवति भागलद्धं तं इच्छं णिद्दिसाहि सव्वत्थ । सेसे वि तस्स भेदे फलरासिस्साऽऽणए सिग्धं ॥ ३११ ॥ इति । एत्थ जुगेण बावत्तरं वतिवाता । रवि-सोमा सगेसु अयणेसु परोप्परं वतिवतंति त्तिवतिवाता । तेसिं अयणा बावन्तरिं पमाणं ति गाधत्थेहिं कातव्वं ति । जहा बावत्तरिवतिवातेहिं ७२ जदि चउव्वीसं पव्वसतं १२४ लब्भति पंचहिं ५ वतिवातेहिं कति पव्वाइं लब्भामो ? त्ति फले संकंते चउब्भागेणोवट्टिते पंचहिं ५ गुणिता एक्कत्ती साए ३१ अट्ठारसहिं भागे हिते लद्धाणि पव्वाणि अट्ठ एक्कारस य अट्ठारसभागा ८१, एते तिधी काहामो त्ति पण्णरसहं भागो पंच ५, अट्ठारसय छेदस्स त्ति भागो छ, पंचहिं ५ एक्कारस ११ गुणेतूण छहिं ६ लद्धा व एक्को य छ भागो ९ । एवं छब्भागो मुहुत्ते काहामो त्ति तीसाए छब्भागो पंच, पंच छेदस्स छब्भागो एक्को, पंचहिं एगं गुणेतूणं एक्केण भागे हिते पंचेव ५, एवं पंचमो वतिवातो अट्ठसु पव्वेसु गतेसु णवमस्स पव्वस्स णवसु तिधीसु गतासु दसमीयं तिधीयं पंचसु मुहुत्तेसु गतेसु पंचमो समत्तो वतिवातो त्ति । एवं सव्वेसु वतिवाते । १. संबंधे पु० मु० म० वि० ॥ २. जतिम्मि जेटि० खंटि० ॥ ३. पमाणो मु० म० । माणा पु० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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