Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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पाययटिप्पण समेय
जंबुद्दीवं छत्तीसाए भागसतेहिं [सट्ठेहिं] अरविवराणिव छेत्ता तत्तो य बे बे भागा पविसंतस्स सूरस्स एक्वेक्स्स तावो वडूति, णिक्खममाणस्स हायतित्त
॥ ३१६ ॥
८२
मंदरपरिरयरासीतिर्गुणे दसभार्जितम्मि जं लद्धं |
तं हवति तावखेत्तं अब्भंतर मंडलगतस्स ॥ ३१७॥
जदा सव्वमंतरमंडलं गतो रवी तदा मंदरम्मि को तावविक्खंभो ? त्ति एत्थ करणं – “ विक्खंभवग्ग दसगुण करणि " [गा० १९६] ति मंदरविक्खंभस्स दस सहस्सा णि १० ०००० संवग्गितस्स दसकरणीगुणस्स मूलं परिरयो एक्कत्ती सं जोयणसहस्साणि छ सयाणि तेवीसाणि ३१६२३ देसूण त्ति एस मंदरपरिरयो । एतस्स तिगुणस्स दसहि भागे हिते लद्धाणि णव जोयणसहस्साणि चत्तारि य सयाणि छडसीयाणि णव य दसभाग यो० ९४८६ ति । एस [ सव्वमंतरमंडलगतस्स सूरस्स ] मंदरम्मि तावविक्खंभो ॥ ३१७॥
मंदैरपरिरयरासीबिगुणे दसभाजितम्मि जं लद्धं ।
तं वति तावखेत्तं बाहिरए मंडले रविणो ॥ ३१८॥
मंदर परिरयस्स पुव्वुद्दिट्ठस्स एक्कत्तीसाए सहस्साणं छण्हं सयाणं तेवीसाणं ३१६२३ बिगुणाणं दसभागो तेवट्ठिसता चतुव्वीसा छ च दसभागा ६३२४, जदा सव्वबाहिरमंडले सूरो तदा मेरुम्मि एस तावविक्खंभो ति ॥ ३१८॥ आदिममंडलपरिधीतिगुणे दसभाजितम्मि जं लद्धं ।
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तं होति तावखेत्तं अब्भंतरमंडले रविणो ॥ ३१९॥
जंबुद्दी परिरये तिगुणे दसभाजितम्मि जं लद्धं ।
तं होति तावखेत्तं अभंतरमंडलगतस्स ॥ ३२० ॥
१. मंडलपरि° जे० खं० ॥ २ °तिगुणो जे० खं० जेटि० खंटि० ॥ ३. 'जितं जहिं लं । जेटि० खंटि० ॥ ४. डलग्गस्स जेटि० खंटि० । 'डले रविणो जे० खं० सू० ॥ ५. मंडल परि जे० खं० ॥ ६. भायम पु० वि० ॥ ७. इयं गाथा पु० मु० म० वि० नास्ति ॥
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