Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 97
________________ ५४ पाययटिप्पणगल मेयं [ १२. बारसमं ' अयणं 'ति पाहुडं] छहिं मासेहिं दिणकरो तेसीतं चरति मंडलसतं तु । अयम्मि उत्तरे दाहिणे य एसो विधी होति ॥ २३५ ॥ तेसीतं दिवससयं अयणं सूरस्स हवइ पडिपुण्णं । सुण तस्स रिगविधिं पुव्वायरिओवदेसेणं ॥ २३६॥ सूरस्स अयणकरणं पव्वं पण्णरससंगुणं णियमा । तिधिसंखित्तं संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ॥ २३७ ॥ तेसीतसत विभत्तम्मि तम्मि लैद्धम्मि रुवमादेज्जा । जति लद्धं होति समं णातव्वं उत्तरं अयणं ॥ २३८ ॥ अध हवति भागलद्धं विसमं जाणाहि दक्खिणं अयणं । जे अंसा ते दिवसा होंति पैवत्तस्स अयणस्स ॥ २३९॥ एताओ पागडत्थाओ ॥ २३५ तः २३९ ॥ तेरस य मंडलाई चतुचत्ता सत्तसट्ठिभागा य । अयण चरइ सोमो णक्खत्ते अद्धमासेणं ॥ २४० ॥ एतस्स णिफत्ती - णक्खत्तमासो सत्तावीसं दिवसा एक्कवीसं च सत्तट्ठिभागा दि० २७ – ७, एतेसिं अद्धं अधवा जदि चोत्तीसेण अयणसतेण १३४ अट्ठारस अहोरत्तसया तीसा १८३० लब्भंति एक्केणं अयणेणं किं लब्भामो १ त्ति फले कामिते अद्धेय वट्टिते णवण्हं सयाणं पण्णाराणं सत्तट्ठिभागा ११५ ६७, लद्वा तेरस दिवसा चोत्तालीसं च सत्तट्ठिभागा १३ । सूरस्स वि अयणणिष्फत्ती — जदि दस अयणेहिं अट्ठारस दिवससयाणि तीसाणि १८३० लब्भंति तो एक्केण Jain Education International १. म्म दक्खिणे उत्तरे य एसा विही जे० खं० ॥ २. कारकविधि जे० खं० वि० । कारगविहिं मु० म० । कारणविहिं पु० ॥ ३. लद्धं तु रूव' पु० मु० वि० म० ॥ ४. हवति जे० खं० ॥ ५. पवण्णस्स जे० खं० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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