Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 98
________________ जोइसकरंडगं ५५ अयणेण किं लब्भति ? ति फले संकामिते समसुण्णावणयणेणं तेसीतं दिवससयं १८३ सुरायणं ॥ २४०॥ चंदस्स अयणकरणे पव्वं पण्णरससंगुणं णियमा । तिधिसंखित्तं संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ॥ २४१॥ णक्खत्तअद्धमासे भजिते लद्धम्मि रूवमादेजा। जदि लद्धं हवति समं णातव्वं दक्खिणं अयणं ॥ २४२॥ अध हवति भागलद्धं विसमं जाणाहि उत्तरं अयणं । सेसाणं अंसाणं ससिस्स इणमो भवे करणं ॥ २४३॥ सत्तट्ठीय विभत्ते जं लद्धं तैति हवंति दिवसा उ । अंसा य दिवसभागा होति पैवत्तस्स अयणस्स ॥ २४४॥ चंदायणकरणं-इच्छितं अयणसरूवं उत्तरं वा दक्खिणं वा ततो दिवसरासिणो ओमरत्तसुद्धस्स सत्तद्विगुणस्स णवहिं सतेहिं पण्णारेहिं ९१५ लद्धं सेसेहिंतो भागेहिंतो सत्तट्ठीय ६१ भागे लद्धा दिवसा पवत्तस्स अयणस्स, जे सेसंसा ते वट्टमाणदिवसभागा, ततो मुहुत्तादिका आणेतव्वा। एतस्स करणणिप्फत्ती अहोरत्तसिद्धा-जदि अट्ठारसहिं सतेहिं तीसेहिं १८३० चोत्तीसं [सतं] चंदायणं लहति इमेण ओमरत्तसुद्धेण दिणरासिणा किं लब्मामो ? ति फले संकामिते सुद्धेण (१ अद्धेण) य ओवट्टिते दिट्ठो गुणकारो सत्तसट्ठिभागहारो णव सता पण्णार १५ ति ॥ २४४॥ [॥ " अयणं" ति बारसमं पाहुडं समत्तं १२॥] १.चंदायणस्स करणे पु० मु० म०वि०॥ २. °मासेण भइए लद्धं तु रूव° पु० मु० म० वि०॥ ३. तं हवंति दिवसा उ पु०। ततिसु होति दिवसेसु जे० ख०॥ १.गा पवत्तमाणस्स अयणस्स पु० मु० वि० म०॥ ५. पवण्णस्स जे. खं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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