Book Title: Painnay suttai Part 3 Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak Publisher: Mahavir Jain VidyalayPage 99
________________ ५६ पाययटिप्पणगल मेयं [१३. तेरसमं ' आउंटि' त्ति पाहुडं ] ऐतो आउट्टीओ वोच्छं जहयक्कमेण सूरस्स । चंदस् य लहुकरणं जह जिङ्कं सव्वदसीहिं ॥ २४५ ॥ सूरस्स उ अयणसमा आउट्टीओ जुगम्मि दस होंति । चंदस्स वि आउट्टि स्सतं च चोत्तीसतिं चेव ॥ २४६ ॥ एत्थ अयणणिफत्ती चंद-सूराणं- -जदि सूरस्स तेसीतेण दिवससतेण १८३ एक्कं अयणं लब्भति अट्ठारसहिं दिवससतेहिं तीसेहिं १८३० किं लब्भामो ? त्ति फले संकंते तेसीतसतभागेण १८३ ओवट्टते दिट्ठा दस १० अयणा । चंदायणणिष्फत्ती - तेरसहिं दिवसेहिं चोत्तालीसाय सत्तविभागेहिं दि०१३ ४४ जदि एक्कं चंदायणं लब्भति अट्ठारसहिं दिवससतेहिं [तीसेहिं] १८३० कति चंदायणाणि लब्भंति ? वा मिल्लो रासी सवण्णितो जायाणि णव सयाणि पण्णाराणि सत्तडिभागाणं, फले रूवे संकंते एसा च सत्तट्ठी संकंता णव पण्णरससतभागेण ९१५ ओवट्टते एक्क्सु अवगतेसु बेर्हि सत्तट्ठिता जातं चोत्तीसं चंदायणसतं १३४ ॥ २४६ ॥ Jain Education International पढमा बहुलपडिवते १ बितिया बहुलस्स तैरेंसीदिवसे २ । सुद्धस्स य दसमीए ३ बहुलस्स य सत्तमीयं तु ४ ॥ २४७॥ सुद्धस्स चउत्थीयं पवत्तते पंचमी उ आउट्टी ५ । एता आउट्टीओ सव्वाओ सावणे मासे ॥ २४८ ॥ पढमा होइ अभियणा १ संठाँणाहि २ त तहा विसाहाहिं ३ | रेवतिमाहु चउत्थी ४ पुव्वाहि य फग्गुणीहिं तथा ५ ॥ २४९ ॥ 9. इयं गाथा जेटि० खंटि० आदर्शयोर्न दृश्यते ॥ २. आउंटीओ वोच्छामि जहकमेण मे सुणह । 'चंदस्स वि लहु जे० खं० ॥ ३. पुण्वसूरीहिं पु० मु० वि० । सव्वदंसीहिं इति पाठस्तु जे ० खं० म० ॥ ४. तेरसे दि° जे० खं० ॥ ५. अद्धस्स जेटि० खंटि० ॥ ६. सत्तमे पक्खे जे० खं० ॥ ७. संघाणा जेटि० खंटि० ।। ८. रेवतिए उ चउ० पु० मु० म० वि० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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