Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 109
________________ पाययटिप्पणगसमेयं मंडलपरिरयस्स बेहिं सतेहिं एकवीसेहिं २२१-गुणितस्स तेरसहिं सहस्सेहिं सत्तहिं सतेहिं पणुवीसेहिं १३७२५ भागो, लद्धाणि पंच जोयणसहस्साणि तेवत्तराणि ५०७३, अंसाण सत्त सहस्साणि णव सया पण्णट्ठा छेदा तेरस सहस्सा सत्त सया पणुवीस ७९६५, त्ति । एतेहिंतो कोसादीणि आणेतव्वाणि । एसा चंदस्स पढममंडले मुहुत्तगति ति । एवं सव्वत्थ ॥ २७३॥ २७४॥ णक्खत्त-सूर-ससिणो एसा भणिता उ मंडलम्मि गती। एतो उडुपरिवाडिं वोच्छामि अहाणुपुत्वीय ॥ २७५॥ [' मंडले मुहुत्तगति' त्ति चोद्दसमं पाहुडं समत्तं] [१५. पन्नरसं 'उडु' त्ति पाहुडं] बे आदिच्चा मासा एगट्ठी ते हवंतऽहोरत्ता। एतं उडुपरिमाणं अवगतमाणा जिणा बेति ॥ २७६ ॥ एत्थ आदिच्चमासा तीसं दिवसा अद्धदिवसो य ३०॥, बे मासा उडु ति बिगुणिता एगढिदिवसा ६१ उडुपरिमाणं ॥ २७६ ॥ सूरउडुस्साऽऽणयणे पव्वं पण्णरससंगुणं णियमा । तिहिसंखितं संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ॥ २७७॥ बिगुणेगट्ठीय जुतं बावीससतेण भाजिते णियमा । जं लद्धं तस्स पुणो छहिं हित सेसं उडू होति ॥ २७८॥ १. भणिया एसा उ पु० मु० वि०॥ २. परिमाणं वो जे० खं० पु० मु० म०॥ ३. दो आ° पु०॥ ४. एयं तु परीमाणं जे० ख०॥ ५. दुगुणे° पु० मु० वि० सू०। २७८-७९ गाथायुगलस्थाने जे० खं० आदर्शयोरेवस्वरूपं गाथायुगलं वर्तते-एगट्ठीय विभत्ते तम्मि य लद्धम्मि रूवमादेजा। जति लद्धं हवति समं निरंसगो नत्थि दायव्वो ॥ लद्धस्स तु छहि भागो जं सेसं सो उडू तु नायव्वो। उडुपरिवाडी य इमा नायब्वा माणुपुवीए॥ इति॥ ६. लई रूवेण जुतं छहिं जेटि० खंटि०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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