Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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६८
पाययटिप्पणगसमेयं
ततियम्मि तु अंतिरतं कातव्वं सत्तमे य पव्वम्मि ।
वास-हिम- गिम्हकाले चातुम्मासे विधीयते ॥ २८२ ॥
वासापक्खे ततिए सत्तमे य पक्खे अतिरत्तं । एवं हेमंताणं पि ततिय - सत्तमेसु पक्खे | एवं गिम्हाणं पि ततिय-सत्तमेसु ॥ २८२ ॥
उडुसहितं अतिरत्तं, जुगसहितं होति ओमरत्तं तु ।
रविसहितं अतिरत्तं, ससिसहितं ओमरत्तं तु ॥ २८३ ॥
एवमतिरतं उडुआदिणा रविणा य पवत्तए । ओमरत्तं जुगादिणा चंदेण य पवत्तते त्ति ॥ २८३॥
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आसाढबहुलपक्खे भद्दवते कत्तिए य पोसे य ।
फग्गुण - वइसासु य अतिरत्तं होति बोद्धव्वं ॥ २८४ ॥
एतेसु अतिरत्तपक्खेसु पक्खिग- चाउम्मासिगाणि पडिक्कमणगाणि ओमरत्तेसु त्ति ॥ २८४ ॥ एत्तो संगचरियागाहाओ
एक्कंतरिता मासा विधी विनासु तु उड्डू समप्पंति ।
आसाढादी मासा, भद्दवतादी तिधी सव्वा ॥ २८५ ॥
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एकंतरिया मासा विधी वि जासु य उडू समप्पंति, जहा – भद्दव - कत्तियपोस- फग्गुण- वइसाह- आसाढेसु, एतेसु छसु मासेसु छ उडू समप्पंति, ण अण्णेसु मासेति । तिधीवि एवमेव -- पाडिवत ततिया पंचमी सत्तमी णवमी एक्कादसी तेरसी पंचदसी बहुल पक्खे, बितिया चउत्थी छट्ठी अट्टमी दसमी बारसी चोदसी सुक्कपक्खे । एताओ पण्णरस तिधीओ जुगस्स पुव्वद्धे जासु उडू समप्पंति पण्णरसीए । ते चैव जुगस्स पच्छिमद्धे वि मासा तिधी य, एतेसु पण्णरस उडू समपंति त्ति ॥ २८५ ॥
१. उ कायन्वं अतिरत्तं स पु० मु० वि० ॥ २. अतिरित्तं जे टि० खेटि० । एवमग्रेऽपि सर्वत्र ॥
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