Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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पाययटिप्पणगसमेयं पण्णरसमुहुत्त दिणो, दिवसेण समा य जा हवति राती । सो होति विसयकालो दिण-रातीणं तु संधिम्मि ॥ २९७॥
आसोय-कत्तियाणं मझे ति आसोयमासस्स जोण्हपक्खे [कत्तियमासस्स कालपक्खे] दक्षिणायण-विसुवाणं जहाजोग्गं एत्थ संभवो। वेसाह-चेत्तमज्झे त्ति चेत्तस्स जोण्हपक्खे वइसाहस्स कालपक्खे एत्थ उत्तरायण-विसुवाणं जहाजोग्गं संभवो। एत्थ सममहोरत्तं दिवसो राती य समाओ, दिवस-राती समत्तं तं विसुवं ति वुच्चति, रविमंडलमज्झस्स णाम विसुवं ति, तं च अभितरातो मंडलातो बाणउतिमं मंडलं, बाहिराणंतरातो वि एमेव । एत्थ किं माणं १ अभियिस्स वत्थंतावा(? जावंतावा) कम्मविहाणं कातव्वं । दिण-रातीणं संधिकालो विसुवकालो त्ति ॥ २९६॥ २९७॥
इच्छितविसुवा बिगुणा रूवूणा छग्गुणा भवे पव्वा । पव्वद्धा होति तिधी णातव्वा सव्वपव्वेसु ॥ २९८॥
एत्थुद्देसो-पढम विसुवं कस्स पव्वस्स का विधीयं होति ? त्ति पढमं विसुवं ति एवं १ थावितं, तं बिगुणं बेण्णि २ रूवाणि, रूवूणं ति एकं १ जातं, छग्गुणं जायाणि छ ६ प्पव्वाणि, पव्वं दिवसादि छ ६ प्पडिरासिताणि, तेसिं अद्धं तिण्णि ३, एवं ततिया तिधी, एवं पढमं विसुवं छसु पव्वेसु गतेसु ततियाए होति ति । एत्थेव ततियं विसुवं कतो होति ? ति गाहत्थेण तिण्णि बिगुणा रूवूणा पंच ५, छग्गुणा तीसं ३० पव्वा, पडिरासेतूण पव्वद्धं तिधी पण्णरसी १५, एवं ततियं विसुवं तीसाय पव्वेसु गतेसु पंचदसीयं होति । एवं सव्वत्थ ॥ २९८॥ अहवा
रूवूण विसुव गुणिते छलसीतिसते खिवाहि तेणवुतिं । पण्णरभाजितलद्धा पव्वा, सेसा निधी होति ॥ २९९॥
१. विसुवं सुद्धी वु जेटि० खंटि०॥ २. पव्वद्धे होति पु० मु० म०॥ ३. सव्वविसुवेसु पु०वि०म० मु०॥ ४. पवका सिद्धीयं जेटि० खंटि०॥५. °रसभाइ ल° पु० वि० मु०॥
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