Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 107
________________ ६४ पाययटिप्पणगसमेयं [१४. चउदसमं 'मंडले मुहुत्तगत्ति' त्ति पाहुडं] मंडले वि सोमरिक्खाणं मुहुत्तगती जहा सरूवा संत्तहिं अधिगा य तिण्णि अंससता । तिण्णेव य सत्तट्टा छेदो तेसिं च बोद्धव्वो ॥ २७० ॥ एते तु भजितव्वो मंडलरासी हवेज्ज जं लद्धं । सो होति मुहुत्त गती रिक्खाणं मंडले णियतो ।। २७१ ॥ एत्थ पढमगाहानि फत्ती — जदि अट्ठारसहिं रिक्खोदयसतेहिं पणती से हिं १८३५ अट्ठारस सूरोदयस्याणि तीसाणि १८३० लब्भंति एतेण (१ एकेण ) रिक्खोदण को कालो लब्भति १ त्ति फले संकते पंचभागेण य ओवट्टिते जाता असा तिणि सता छावट्ठा ३६६, छेदो तिण्णि सता सत्तट्ठा ३६७, मंडलपरिरयो सूरस्स सही मुहुत्तत्ति अंसा सट्टीय ६० गुणिता जाया एक्कवीसं सहस्सा णव सया सट्टा २१९६०, तेसिं छेद्रेण तिर्हि सतेहिं सत्तट्ठेहिं ३६७ भागो, भागलद्धा गूणसट्ठी ५९ मुहुत्ता अंसा तिण्णि सउत्तरा (? तिणि सया सत्तउत्तरा ) ३०७, एवतिएणं कालेणं णक्खत्तं मंडलं समाणेति । एसा पढमगाहाणिप्फत्ती ॥ २७० Jain Education International बितियगाहाकरणे एस रासी सवण्णितो एक्कवीसं सहस्सा णव सता सट्टा २१९६०, छेदो तिणि सता सत्तट्ठा ३६७, एतेण इच्छितस्स णक्खत्तस्स मंडलपरिरयो भजितचो त्ति एत्थ पढममंडलस्स परिरयो तिण्णि जोयणसयसहस्सा पण्णरस सहस्सा णउता ३१५०९० एतस्स रासिणो भागं परावत्तेउं तिहिं सतेहिं सत्तट्ठेहिं ३६७ गुणितस्स एक्कवीसाए सहस्सेहिं णवहिं सतेहिं सट्ठेहिं २१९६० समसुण्णगं अवणेतून भागो, लद्धाणि बावण्णं जोयणसताणि पण्णद्वाणि अंसाणं च अट्ठारस [ सहस्सा बे] सता उ तेवट्ठा १८२६३, तेहिंतो कोसा तिजवंतावपमाणाणि आणतव्वाणि । एसा पढममंडलत्थाणं अभिजिमादिगाणं बारसहं णक्खत्ताणं मुहुत्तगती । एवं सेसाण साधेतव्वा ॥ २७९ ॥ १. सत्ता सहिया य जे० खं० ॥ २. छेदो पुण तेलि बो' जे० खं० पु० मु० म० वि० ॥ ३. नक्खत्तमुहुत्तगती सा नियमा (? या ) मंडले हवति जे० खं० । सा होति मुहत्तगती रिक्खाणं मंडले नियया पु० मु० म० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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