Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 95
________________ पाययटिप्पणगसमेयं एकं च सयसहस्सं छ चेव सयां हवंति सट्ठी य । सूराण ऊ अबाधा बहिरए मंडलत्थाणं ॥ २२७॥ एतस्स णिप्फती-जंबुद्दीवविक्खंभे जोयणसतसहस्से १०००००। तिण्णि जोयणसताणि तीसा ३३० बिगुणा छ चेव सताणि सट्ठाणि ६६० । एस बाहिरमंडलत्थाणं सूराणं अबाधा ॥ २२७॥ पंचेव जोवणाई पणतीसं एगसट्ठिभागा य । एस अबाहावड़ी एक्कक्के मंडले रविणो ॥२२८॥ एतस्स णिप्फत्ती-सूरो सविकप्पो बिगुणो होति ति एस रासी पढममंडलविक्खंभे पक्खितो बितियमंडलविक्खंभो होति । एसा बितियमंडलत्थाणं सूराणं अबाधा ॥ २२८॥ रूवूणमंडलगुणं अबाधवडीए पक्खिवे णियमा । मंडलविक्खंभम्मि तु विक्खंभो तस्स सो हवति ॥ २२९॥ इच्छितमंडलस्स विक्खंभाणयणत्थं एत्थ करणं-एक्कारसत्थस्स मंडलस्स विक्खंभो इच्छितो ति एक्कारस रूवूणा दस, एतेहिं गुणिता विक्खंभवडी पणपण्णं जोयणाणि पणतालीसं एगट्ठिभागा यो० ५५४५, एस पढममंडलविक्खंभे पक्खित्ता दसमंडलस्स विक्खंभो होति । एवं सव्वत्थ ॥ २२९॥ चंदस्स जोयणाई बिसत्तरि एकवण्ण अंसा य । एक्कट्ठिगते छेदे णातव्वा सत्तभागा य ॥२३०॥ एयस्स णिप्फत्ती-चंदविकप्पो दुगुणो होति ति "रूवूणमंडलगुणं" [गा० २२९] जहा सूरस्त तधा चंदस्स वि इच्छिते मंडलविक्खंभे ॥ २३०॥ १. सया उ होंति सट्ठीया वि० पु० मु०॥ २. मंडले नेया वि० पु० मु०॥ ३. पणतीसा जे० खं०॥ ४. एसा अबाहवड्डी जे० खं०॥ ५. °णाणि य बिसत्तरी एकवण्ण° पु० मु०॥ ६. एकपण्णमंसा जे० खं०॥ ७. एगटिकते छेए नायव्वा सत्तभागा य पु० मु०। एगट्टिगते छेदे णातत्वो सत्तभागो य॥ जेटि० खंटि०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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