Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 42
________________ १-२. ३. ५-६. ४. ७-८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०-२१. २२. २३. Jain Education International मंगलमभिधेयं च तेवीस पाहुनामाई विसयाणुकमो विसभो पढम-ब्रितियाइं कालप माण- माणनामाणि पाहुडाणि इयं अधिगमासगपाहुडं पंचम छट्ठागि पव्वसमत्ति-तिहिसमत्तिपाहुडाणि उत्थं ओमरतपाहु सत्तम अडमाणि णक्खत्तपरिमाण चंदसूरपरिमाणपाहुडाणि नवमं नक्खत्त-चंद-सूरगतिपाहुडं दसमं नक्खत्तजोगपाहुडं एक्कारसमं मंडलविभागपाहुड बारसमं 'भय' ति पाहुडं तेरसमं ' आउंटि' त्ति पाहुडं चउदसमं 'मंडले मुहुत्तगति' त्ति पाहुडं पन्नरसं 'उडु' त्ति पाहुड सोलसमं 'विसुव' त्ति पाहुडं सत्तरसमं 'वतीवाते 'ति पाहुडं अट्ठारसमं 'तायं तावखेत्तं ' ति पाहुडं गुणवीस इमं 'दिवसाणं वड्डि ' त्ति पाहुडं सम- इगवीसइमाई 'भवमा सि- पुण्णमासि' त्ति पाहुडाई बावीस इमं ' पणटुपचं ' ति पाहुडं तेवीसइमं 'पोरिसि' त्ति पाहुर्ड वसंहारो, मूलगंथकार वित्ति (टिप्पणग) कारनाम निद्देसो, अंतिम मंगलं च For Private & Personal Use Only पिटंको १-२ २ ३-२० २१ २२-२४ २४-२६ २६-३२ ३३ ३३-४० ४०-५३ ५४-५५ ५६–६३ ६४-६६ ६६-७१ ७१-७८ ७८-८० ८०-८४ ८४-८६ ८७-१०५ १०५-१०७ १०७-११० ११०-१११ www.jainelibrary.org

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