Book Title: Painnay suttai Part 3
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 90
________________ ४७ जोइसकरंडगं मूल-ऽग्गविसेसम्मि उ उस्सयभयितम्मि जं भवे लद्धं । सा हर-णदी-णगाणं पदेसवड़ी उ सा उभतो ॥२०॥ __ मेरुस्स मूलविक्खंभो दस सहस्सा १००००, उवरि विक्खंभसहस्सं १०००, एतेसिं विसेसो णव सहस्सा ९०००, एतेसिं भागो णवणउतीय सहस्सेहिं ९९००० सगेण उस्सेहेण, अवगतसमसुण्णं अंसच्छेदेण णवहि ओवट्टितो, जातो एक्कारसभागो एक्को के एसा उभओ वडी । एवं मेरू अवणितलातो एक्कारस पदेसे गंतूणं पदेसं परिहायति, एक्कारसे वा जोयणाणि गंतूणं जोयणं परिहायति । उवरितलातो अधोऽधो एव वडति ति। एवं सव्वत्थ पदेसखय-बड़ी आणेतन्व ति ॥ २००॥ मूल-ऽग्गविसेसऽद्धकति उसुस्स य कतिजुतस्स जं मूलं । एस गिरिपासबाहा,सागरसलिले वि एमेव ॥ २०१॥ मेरुस्स मूलविक्खंभो दस सहस्साई १००००, उवरिविक्खंभो सहस्सं १०००, एतेसिं विसेसो णव सहस्सा ९०००, तेसि अद्धं पणतालीसं सता ४५००, एतेर्सि वग्गो, उसुस्स य णवणउतीय सहस्साणं ९९००० वग्गो, एतेर्सि बेण्हं पि वग्गाणं समासरासी मूलं गिरिस्स उस्सयपासबाहा हवति। एवं लवणसागरस्स वि ति ॥२०१॥ चंदा सूरा तारागणा य णक्खत्त-गहगणा चेव । तं ते पदक्खिणगती परिति मेरुं गतिरतीया ॥२०२॥ पण्णरस मंडलाई चंदस्स महेसिणो पैदेसेंति । चुलसीय मंडलसतं अणूणगं बेंति सूरस्स ॥ २०३॥ १. इयं गाथा जेटि० खंटि. आदर्शयोरेव वर्सते। जे० खं० पु० मु०म०वि० आदर्शेषु नास्ति। २. गती मेरुं गतिरागतिकरा उ ॥ जे० ख०॥ ३. परेंति पु० मु०॥ ४. पदंसेंति जे० खं । उवदिसंति पु० मु० म० वि०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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