Book Title: Painnay suttai Part 3 Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak Publisher: Mahavir Jain VidyalayPage 89
________________ ४६ पाययटिप्पणगसमेय मझकंडं सुवण्ण-रजत-अंक-फालिकमयं रयणचितं तेवढि जोयणसहस्साणि ६३०००।२। ततियं कंडं जातरूवमयं जंबूणदं छत्तीसं जोयणसहस्साई ३६०००।३। सिहरे चूलिगा वेरुलिगमयी चत्तालीसं ४० जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं, मूले बारस १२ जोयणाणि वित्थिण्णा, मज्झे अट्ठ ८, उवरि चत्तारि ४। तस्स गिरिणो चत्तारि वणाणि, तिण्णि मेहलाओ। मूले भद्दसालवणं १। मूलातो पंच सताणि ५०० उडूं उप्पतित्ता मेहला पंचजोयणसतवित्थिण्णा ५००, एत्थं गंदणवणं २। गंदणवणाओ अद्धतेवट्ठिजोयणसहस्साई ६२५०० उडूं उप्पतित्ता एत्थ मेहला पंचजोयणसतवित्थिण्णा ५००, एत्थ सोमणसं वणं ३॥ सोमणसवणातो छत्तीसंजोयणसहस्साइं३६००० उडू उप्पतित्ता एत्थ मेरुउवरितले जोयणसहस्सवित्थिण्णो १०००, एत्थं पंडगवणं ४। एत्थ उ सिलाओ पंडुकंबलाओ पंचजोयगसयायामाओ ५०० तदद्धवित्थडाओ २५०, तत्थ बे आसणाणि पंचधणुसतुस्सेधाणि ५००, जत्थ तित्थकरा अभिसिचंति ॥ १९७ ॥ १९८॥ जस्थिच्छसि विक्खमं मंदरसिहरांहि ओवतित्ताणं । एक्कारसहितलद्धो सहस्ससहितो तु विक्खंभो ॥१९९॥ मेरुस्स उवरितलातो छत्तीसं जोयणसहस्साई ३६००० हेटुं ओवतितूणं एत्थं सोमणसे वणे को बाहिर गिरिविक्खंभो? को अभितरगिरिविक्खंभो? त्ति एत्थ करणं-छत्तीसाए सहस्साणं ३६००० एक्कारसहिं ११ भागो, लद्धे सहस्सं दिण्णं, जायाणि बातालीसं जोयणसताणि बावत्तराणि अट्ठ च एकारसभागा ४२७२६, एस बाहिरगिरिविक्खंभो । एसेव सहस्सरहितो अभितरगिरिविक्खंभो, जहा-बत्तीसं सता बावत्तरा अट्ट चेक्कारसभागा ३२७२८। जावतिओ अब्भंतरगिरिविक्खंभो सोमणसवणे सो चेव अभंतरगिरिविक्खंभो सोमणसवणातो जाव एक्कारस जोयणसहस्साई ११००० उडू ति, एत्थ णत्थि पदेसपरिहाणी, तेण परं पदेसपरिहाणी। एत्थ अभितरगिरिपरिरयो य बाहिरगिरिपरिरयो य आणेतन्यो, “विक्खंभ वग्ग दसगुण करणी वट्टस्स परिरयो होति" [गा० १९६] त्ति, एत्थं जत्थ जत्थ विक्खंभो इच्छितो तत्थ तत्थ एतेण करणेण आणेतव्वो ति ॥१९९॥ एत्थं पदेसपरिवडीय करणगाहा १. रामो मोवइत्ताणं पु० मु० वि०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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