Book Title: Painnay suttai Part 3 Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak Publisher: Mahavir Jain VidyalayPage 88
________________ जोइसकरंडगं ४५ जंबुद्दीवस्स विक्खंभं एक्कं जोयणसयसहस्सं, एस विक्खंभो वग्गितो दसहि य गुणो, जाया एक्कारस गुणाओ ( १ सुण्णाओ ) रूवं अंते १०००००००००००, तस्स मूलं जंबुद्दीवस्स परिरयो होति । जहा - जंबुद्दीवपरिरयो तिणि तु सोलाणि सयसहस्साणि । बेय सया पडिपुण्णा सत्तावीसा समधिया य ॥ १ ॥ तिणि य कोसे दीवो (?) अट्ठावीसं च धणुसयं एक्कं । तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलयं च सविसेसं ॥ २ ॥ यो० ३१६२२७ क्रो० ३ ६० १२८ अं० १३३ । " विक्खंभपादगुणितोय परिरयो हवति गणितपदं " परिरयस्स विक्खंभपादगुणितस्स जं आगतं [i] जंबुद्दीवस पतरगणितं होति । जहा- — सत्त कोडिसयाणि णउतिं कोडीओ छप्पण्णं सग्रसहस्साणि चतुणउती य सहस्सा दिवडूजोणतं ७९०५६९४१५० । एत्थ गाधा सत्तेव य कोडिसया णउतिं छप्पण्ण सयसहस्साइं । चतुणउतिं च सहस्सा सतं दिवडुं च गणितपदं ॥ १ ॥ ॥ १९६ ॥ जंबुद्दीवस्स भवे बहुमज्झे सव्वरतण - धातुचितो । मेरू णाम णगवरो सुक्कीलो देवराईणं ॥ १९७॥ र्णवणउतिजोयणसहस्समुस्सितो उग्गतो सहस्समधे | वित्णिो धरणितले य जोयणाणं दस सहस्से ॥ १९८ ॥ एवं जंबुद्दीवस बहुमज्झदेसभागे महाविदेहस्स मज्झे मेरू णाम पव्वतो, सक्कज्झया किती, णवणउर्ति जोयणसहस्साई ९९००० उड्डूं उस्सेवेणं, एक्कं जोयणसहस्सं १० ००० उब्वेहेणं, धरणितले दस जोयणसहस्साणि वित्थिण्णो १००००, उवरितले सहस्सं १००० वित्थिण्णो त्ति, तिण्णि वि लोगे संफुसमाणो । तस्स पढमं कंडं पुढवि-सिला - वइर - सक्करमयं जोयणसहस्सोगाढं १००० । १ । १. 'तुचित्तलितो जेटि० खंटि० ॥ २. जे० खं० वि० पु० मु० म० आदर्शेषु इयं गाथा एवंरूपा वर्त्तते- नवनउइं च सहस्सा उन्विद्धो ( उच्च इत्यर्थः) अह (अधः ) सहस्समोगाढो । धरणियले विच्छिण्णो [य] जोयणाणं दस सहस्सा ॥ इति । उब्विद्धो स्थाने उच्चिट्टो पु० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166