Book Title: Painnay suttai Part 3 Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak Publisher: Mahavir Jain VidyalayPage 74
________________ जोइसकरंड गं एताओ पागडत्थाओ || १३८ तः १५० ॥ एगं च सय सहस्सं अट्ठाणउतिं सता य पडिपुण्णा । एसो मंडलछेदो सीमाणं होति गातव्व ॥ १५१ ॥ एतस्स णिप्फत्तिमंडलं जावंतावसतेहिं छत्तीसाए सट्टेहिं ३६६० खेत्तछेदेण छिण्णं, एस खेत्तसीमासमासो भवति छत्तीससया सट्टा ३६६० । एसेव खेत्तसीमो तीसाए ३० गुणितो कालसीमो भवति, एगं सतसहस्सं अट्ठाणउतिं सयाणि १०९८०० ति । एत्थ अभिजिस्स खेत्तसीमो एक्वीसं २१ जावंतावा, अद्धखेत्ताणं तेत्तीसं जावंतावा दुभागो य ३३३, एते तिगुणिता दिवडूखेत्ताणं भागसतं दुभागो य १००३, समखेत्ताणं सत्तट्ठि ६७ जावंतावा । एत्थं अद्धखेत्ता छगुणा ६, दिवडूखेत्ता बिछग्गुणा १२, समखेत्ता पण्णरसगुणा १५, एवं अट्ठावीसं रिक्खाणं । एतेसिं सव्वसमासो अट्ठारस सता तीसंइभागाणं १८३० एक्ससिस्स खेत्ते सीमच्छेदाणं । एतं विगुणं दोन्हं ससीणं छप्पण्णाए व रिक्खाणं जुगखेत्तसीमा [३६६०], तीसगुणा कालसीमा [१०९८०० ] होति त्ति ॥ १५१ ॥ एत्थ गाहाओ - Jain Education International ३१ छच्चैव सता तीसा भाग अभिजिस्स सीमविक्खंभो । दिट्ठ सव्वडहरगो सव्वेहिं अनंतणाणीहिं ॥ १५२ ॥ सैयभिस भरणी अद्दाऽसिलेस साती तहेव जेट्ठाणं । पंचुत्तरं सहस्सं भागाणं सीमविक्खंभो ॥ १५३ ॥ एतं चेवें तिगुणितं – १००३ तृ (१ त्रि) संगुणं – पुणव्वसू - रोहिणीविसाहाणं | तिण्हं च उत्तराणं, अवसेसाणं भवे बिगुणं ।। १५४ ॥ १. तीसत्तट्टिभा जेटि० खंटि० ॥ २. गाणं अभिइसीम' जे० खं० ५० मु० वि० म० ॥ ३. संयभिसया भरणीओ अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य । जे० खं० । सयभितया भरणीए अहा अस्सेल साइ जेट्ठाए । सू० पु० मु० वि० ॥ ४. चेव य तिगुणं जे० खं० पु० मु० वि० म० ॥ ५. दुगुणं जे० खं० वि० पु० मु० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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