Book Title: Painnay suttai Part 3 Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak Publisher: Mahavir Jain VidyalayPage 44
________________ ॥ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महइमहावीरवद्धमाणसामिस्स ॥ ॥ णमोऽत्यु णं अणुओगधराणं थेराणं ॥ सिरिसिवनंदिवायगविरइयपाययटिप्पणगसमेयं थेरभदंतसिरिपालित्तकायरियनिज्जूहियं जोइस करंडगं ॥ण मो अरहं ताणं॥ > कातूण णमोक्कारं जिणवरवसभस्स वद्धमाणस्स । जोतिसकरंडगमिणं लीलावट्टीव लोगस्स ॥१॥ कालण्णाणाभिगमं सुणह समासेण पागडमहत्थं । णक्खत्त-चंद-सूरा जुगम्मि जोगं जध उति ॥ २॥ किंचि(१कंचि) वायग वालभं सुतसागरपारगं दढचरितं । अप्पस्सुतो सुविहियं वंदिय सिरसा भणति सिस्सो ॥३॥ सज्झाय-झाण-जोगस्स धीर ! जदि वो ण कोयि' उवरोधो । इच्छामि ताव सोतुं कालण्णाणं समासेणं ॥ ४ ॥ अह भणति एवभणितो उवमा-विण्णाण-णाणसंपण्णो । सो समणगंधहत्थी पडिहत्थी अण्णवादीणं ॥५॥ १. <> एतच्चियान्तर्गतं गाथाषट्कं मलयगिरिवृत्तौ पु. आदर्श च नास्ति । जे० खं० सूत्रादर्शयोः पुनरादित आरभ्य एकादश गाथाः न सन्ति, किन्तु णमो मरहंताणं इत्युल्लिख्य णते(?)भावणियतं जोतिसचक० इति द्वादशगाथातः प्रारब्धमिदं प्रकीर्णकं वर्तते, अतो ज्ञायते प्राचीनकालादेव एतत्प्रकीर्णकप्रारम्भमागो विनष्टोऽस्ति। किञ्च जेटि० खंटि. आदर्शयोरेष प्रारम्भभागः सुरक्षितो वर्चते॥ २. अप्पसुतो जेटि० खंटि०॥ ३. सजियशाण° जेटि० खंटि०॥ १. वीर! जेटि. खंटि०॥५. को पि उवजेटि०॥ जो. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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