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પ્રસ્તાવના
उपर के दोनों अवतरणों में स्थित विसंगति यह है कि इस श्लोककी संस्कृत टीका में दक्षिणायन में आनेवाले विषुव दिनका नक्षत्र अश्विनी है और अंग्रेजी भाषांतर में वही अश्विनी नक्षत्र उत्तरायण के विषुव दिनको जोड दिया गया है। डॉ. शामशास्त्रीको मैंने इस विषय में पत्र लिखा था। आप अपना अंग्रेजी भाषांतर ही यथार्थ प्रतिपादित करते हैं, कारण सष्ट है कि अश्विनी नक्षत्र में उत्तरायणका विषुवदिन याने वसंतसंपात यह आजसे लगभग दो हजार वर्ष पूर्व होता था । अन्यथा संस्कृत टीकाकारने लिया हुवा अश्विनी नक्षत्र में दक्षिणायनका विषुव याने शरदसंपात होनेको कमसे कम १४००० चौदह हजार वर्षों से अधिक काल हो गया' है।
ज्योतिष करंडक का यह श्लोक स्वभावतः क्लिष्ट और संभ्रमोत्पादक है । उसमें दो बार दक्षिणायन शब्द आनेसे उसका संबंध अश्विनी से लगाना या स्वातीसे लगाना यह एक जटिल समस्या है। और जैन प्राचीन साहित्य के अंदर आनेवाले ज्योतिष विषयके अन्यान्य प्रमाणोंका सम्यक् अभ्यास करनेवाले पंडित ही उसको हल कर सकेंगे ।
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चित्रा और स्वाति इनके बीच में वसंतसंपात रहनेका प्रमाण तो संस्कृत ज्योतिष ग्रंथमें पाया जाता है | सूत्रभाष्य में कर्काचार्यका ऐसा स्पष्टवचन ' है । फिर उपर बताये हुए ज्योतिषकरंडक पद्यमें जो स्वातिका संबंध वसंतसंपात से देखा जाता है वह भी यथार्थ क्यों न हो ?
यह एक ही नहीं ऐसे अनेकानेक प्रश्न उपस्थित होते हैं। आवश्यकता है उनकी ओर ध्यान देकर उस दिशासे जैन साहित्यका संशोधन करनेवालोंकी । जैन जनता धार्मिक है, उदार है और धनवान भी है । वह चाहे तो अपने प्राचीन धार्मिक साहित्यका ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धतिसे अभ्यास करनेवाले विद्वानोंको प्रोत्साहन देकर भारतीय संस्कृतिका गौरव बढाने में अंशभाक् हो सकती है और होवे यह प्रार्थना है ।
નોંધ : આશા છે કે જૈન જ્યોતિષના જાણકાર પૂજ્ય મુનિરાજો આ લેખમાં પૂછ્યામાં આવેલ શંકા ઉપર વિચાર કરી તેનો ખુલાસો લખી મોકલવા કૃપા કરશે. આવો ખુલાસો મળશે તો અમે તે પ્રગટ કરીશું. तंत्री
उपरना सेपमां श्री मुम्मे न्योतिष्ठरंगुनी ने "लग्गं च दक्खिणायण ० " गाथा ઉદ્ધૃત કરીને, તેને વિસંગત અને સંભ્રમોત્પાદક જણાવી છે, તે ગાથા જ હકીકતમાં મૌલિક પ્રમાણભૂત નથી. આ સૂચિત ગાથાના સ્થાનમાં અમારા પ્રસ્તુત પ્રકાશનમાં આ પ્રમાણે ગાથા છે—
दक्खिणअयणे लग्गं पंचसु विसुवेहि होति अस्से य । उत्तरअयणे लग्गं साती विसुवेसु पंचसु वि ॥ ३०६ ॥
ઉપર નોંધેલી ગાથા ઉપર પ્રસ્તુત ગ્રંથના સંપાદક પૂ. પા. આગમપ્રભાકર મુનિશ્રી પુણ્યવિજયજી
१. संपात बिंदू की वाम गति है और नक्षत्रचककी एक पूर्ण प्रदक्षिणा लगभग २६००० वर्षमें होती है । हाल वसंतसंपात उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रमें है । अश्विनीसे उत्तरा भाद्रपदा तकका दो नक्षत्रोंका अंतर १४ हजार वर्ष पूर्व होता था ।
२. पं. दी. चुलेट : ' वेदकालनिर्णय' ।
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