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२ पदार्थ सामान्य स्वाद आदि न बन जाना ही उसकी ध्रुवता या नित्यता है । इस प्रकार गुण भी नित्यानित्य है। अपनी-अपनी अवस्था या पर्यायमालाको धारण करनेके कारण नित्य तरगित व प्रवाहित है। १० पदार्थ गुणो व पर्यायोंका समूह है
इस प्रकार देखनेपर पता चलता है कि पदार्थ कितना विचित्र है। वह गुणोका ही नही बल्कि प्रत्येक गुणकी अपनी-अपनी पर्यायोंका भी समूह है। वास्तवमे कहना चाहिए कि पदार्थ गुणो तथा पर्यायोका समूह है । समूहका अर्थ पहले बता दिया गया है, उसी प्रकारका समझना । अर्थात् यहाँ एकमेक रहनेवाले समूहसे तात्पर्य है, पृथक् वस्तुओंके समूहसे नही। ११. पर्याय ही दृष्ट तथा अनुभूत हैं । वास्तवमे देखा जाये तो पदार्थमे न ती पदार्थ दिखाई देता है और न उसके गुण । ये तो सब पर्यायें ही हैं जो कि दिखाई देती हैं या अनुभवमे आती हैं। आपने आम देखा तो बताइए क्या देखा ? मैं आपसे कहूँ कि कच्चा-पक्का तो न देखना पर आम देखना, तो आप ही बताओ कि क्या देखेंगे ? या यो कह लीजिए कि आमका रूप, रस, गन्ध, स्पर्शका देखना ही आमका देखना है । वहां भी हरे पीलेके अतिरिक्त या खट्टे मीठेके अतिरिक्त तथा गन्ध विशेषोके अतिरिक्त या कठोर-नरमके अतिरिक्त क्या देखा ? मैं आपसे कहूँ कि हरा-पीला तो न देखना पर रग देखना या खट्टा-मीठा तो न चखना पर रस चखना, गन्ध विशेष तो न सूचना पर गन्ध सूचना या कठोर-नर्म तो न छूना पर स्पर्श छूना, तो आप ही बताइए कि आप क्या कहेगे ? क्या हरा, पीला आदि न देखकर केवल रग देखा जाना सम्भव है, या खट्टा-मीठा आदि न चखकर केवल रस चखा जाना सम्भव है ? इसी प्रकार सर्वत्र जानना ।