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पदार्थ विज्ञान
सूक्ष्म कीटाणुसे लेकर मनुष्य पर्यन्त स्थावर-वस आदि अनेको रूपोमे पाया जाता है, जिसका परिचय पहले अध्यायमे दिया जा चुका है। वहां बताया गया है कि लोकमे दीखनेवाले ये सर्व ही छोटे-बड़े जीव तीन तत्त्वोंसे मिलकर बने हैं-चेतन, अन्त करण तथा शरीर। इन तीनोमे-से चेतन तथा अन्त करणका विस्तृत विवेचन जीव पदार्थके अन्तर्गत किया जा चुका है, क्योकि चेतन स्वय जीव है और अन्तःकरण चिदाभास अर्थात् जीव सरीखा लगनेवाला । तीसरा जो शरीर है वह अजीव पदार्थ है अर्थात् स्वय जानने-देखनेकी शक्ति नहीं रखता, इसलिए उसको तथा विश्वकी अनेक भौतिक विचित्रताओको जाननेके लिए अजीव पदार्थको जानना भी अत्यन्त आवश्यक है । अब वही कहते हैं । २. अजीव-सामान्य
जीव पदार्थसे उलटा अजीव पदार्थ है । जीव जानने-देखनेवाला है और अजीव जानने-देखनेकी शक्तिसे रहित है। जानने-देखनेकी शक्ति न होनेका अर्थ यह नही कि उसमे अन्य कोई शक्ति या गुणधर्म आदि पाये नही जाते, क्योकि गुणो तथा धर्मोसे रहित कोई वस्तु हो ही नहीं सकती। गुणोका समूह ही द्रव्य या पदार्थ होता है। ठीक है कि अजीव पदार्थमे जीव पदार्थ जैसे गुण तथा धर्म नहीं हैं परन्तु उसमें उसके अपने किसी विशेष जाति के गुण तथा धर्म तो है ही। ३. अजीव-विशेष
अजीव पदार्थ इस लोकमे अनेक विचित्रताओंसे भरा हुआ है है। वास्तवमे यहा इस विश्वमे जो कुछ भी दृष्ट है वह सभी उस अजीव पदार्थका पसारा है। जो कुछ भाग-दौड यहाँ दिखाई दे रही है वह सब इस अजीव पदार्थकी है। विश्व प्रमुखत अजीव