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पदार्थ विज्ञान
टिकी हुई दिखाई देती है । यदि चन्द्रमामे बैठकर देखें तो यह पृथ्वी, चन्द्रमा या सूर्यकी भाँति अधर एक गोल पिण्ड दिखाई देगी और चन्द्रमा टिका हुआ दिखाई देगा । यह सब तो हमारी सकुचित दृष्टिका भ्रम है । वास्तवमे यह सभी वडे-बड़े भारी गोले इस आकाशमे लटके हुए है । इतना ही नही बल्कि अपनी-अपनी सीमाओमे रहते हुए बराबर एक दूसरेके गिर्द चक्कर काट रहे है, और स्वयं अपने आप भी लट्टकी भाँति घूम रहे हैं ।
पृथ्वी आदिको अधरमे टिकानेके लिए किसी ताकतका प्रयोग किया जा रहा हो सो भी नही है । फिर ये नीचे क्यो नही गिर जाते ? ऐसा प्रश्न वेकार है । नीचे गिरकर कहाँ जायेंगे ? जहाँ भी जायेंगे वहाँ आकाश है । आप नीचे किसे कहते हैं, क्या पृथिवीको ? अरे भाई | पृथ्वी स्वय अधरमे लटकी हुई है । यह स्वय गिरकर कहाँ जायेगी ? इसी प्रकार एक-दो नही असंख्यात पृथ्वियाँ और असख्यात सूर्य-चन्द्र इस व्योम - मण्डलमे अधर लटके हुए हैं । लटके हुए न कहकर यही कहना चाहिए कि सब अपने-अपने स्थानपर टिके हुए हैं । प्रत्येक पृथ्वी- मण्डलपर या सूर्य-चन्द्रादिपर रहनेवाला व्यक्ति हमारी ही भांति अपनी पृथ्वीको नीचे मानता है ओर दूसरी पृथ्वियोको ऊपर । उसे अपनी पृथ्वीके गिरनेका भय नही होता, क्योकि अपने पाँवके नीचे उसे पोलाहट दिखाई नही देती । बिलकुल इसी प्रकारकी पोलाहट हमारी ओर सबकी पृथ्वियोंके नीचे ही नही चारो तरफ भी है । इन सबका पोलाहटोमे सुरक्षित टिकाये रहना ही आकाशका 'अवगाहनत्व' गुण है, जो साधारण-सी बात नही बल्कि महान है, सार्थक है ।
अरे । पृथ्वियां ही नही यदि कोई भी जाकर रहना चाहे, तो रह सकता है । पृथ्वी आदिकी आवश्यकता उसे नही है
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पदार्थ शुद्ध आकाशमे
किसी भी आधार या यह जो पदार्थ ऊपरसे