Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 261
________________ ११ काल पदार्थ २४५ होती है तो बालक अवस्थाका जन्म होता है, बालक अवस्थाकी मृत्यु होती है तो युवा अवस्थाका जन्म होता है । इसी प्रकार युवा अवस्थाकी मृत्यु और प्रौढ अवस्थाका जन्म, प्रौढ अवस्थाकी मृत्यु और वृद्ध अवस्थाका जन्म । इस प्रकार एक ही शरीरमे जन्म-मरणकी अटूट सन्तान बराबर चलती रहती है । इस एकएक पृथक्-पृथक् अवस्थामे भी अनेको सूक्ष्म परिवर्तन होते रहते है जो उस-उस सूक्ष्म पर्यायका जन्म मरण ही है । पर्यायका उत्पन्न होना और विनशना ही वास्तवमे उसका जन्मना तथा मरना है, भले ही वह पर्याय जीवकी हो या अजीवको । पर्याय- परिवर्तनका नाम ही काल है । अत मृत्युको काल कहना ठीक है । क्षेत्रात्मक तथा भावात्मक परिवर्तनमें इतना अन्तर है कि क्षेत्रात्मक परिवर्तन तो कभी-कभी तथा कही-कही ही होता है, परन्तु भावात्मक परिवर्तन सर्वत्र सदा ही होता रहता है । क्षेत्रात्मक परिवर्तन तो किसी पदार्थमे होता है और किसीमे नही, परन्तु भावात्मक परिवर्तन सभी पदार्थोंमे होता है, वह मूर्तिक हो कि अमूर्ति, सूक्ष्म हो कि महान् । क्षेत्रात्मक परिवर्तन तो कही होता है ओर कही नही, परन्तु भावात्मक परिर्तन सर्वत्र होता है । क्षेत्रात्मक परिवर्तन तो कभी होता है और कभी नही पर भावात्मक परिवर्तन सर्वदा होता है । भावात्मक परिवर्तन दो प्रकारका होता है - सूक्ष्म तथा स्थूल । सूक्ष्म परिवर्तन वह कहलाता है जो प्रतिक्षण पदार्थ के भीतर ही भीतर होता रहता है, और स्थूल परिवर्तन वह है जो बाहर देखनेमे आ जाता है। हम स्थूल दृष्टिवाले प्राणी स्थूल परिवर्तन को ही देख सकते है सूक्ष्मको नही । परन्तु इस परसे यह नही कहा जा सकता कि सूक्ष्म परिवर्तन होता ही नही । बिना सूक्ष्म समयवर्ती परिवर्तनके स्थूल परिवर्तन हो ही नही सकता, क्योकि

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