Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ २४४ पदार्थ विज्ञान रेत घडीके ऊपरवाले कोष्ठकसे चलकर नीचे आवे उतनी देरको एक घड़ी कहते हैं। जितनी देरमे घडीकी सूई इधरसे चलकर पूरा चक्कर काटकर उधर आ जावे उसे एक घण्टा कहते हैं। जितनी देरमे सूर्य पूर्वसे चलकर पश्चिममे आ जावे उसे एक दिन कहते हैं। इसीपर-से ऋतु व वर्ष आदिकी गणना होती है । आंखकी पलक, रेतघड़ी, घडीको सुई तथा सूर्यका विमान ये सब पुद्गल पदार्थ हैं। इनके गमन या क्षेत्रात्मक परिवर्तनपर-से हमे निमेष, घड़ी, घण्टा, दिन आदिकी कल्पना होती है। यदि किसी भी पदार्थमे परिवर्तन ही न हुआ होता तो बताइए किसे घड़ी, घण्टा, दिन, वर्ष आदि कहते । अत. कहा जा सकता हैं कि पदार्थोंमे होनेवाला क्षेत्रात्मक परिवर्तन ही व्यवहार काल है। क्योकि परिवर्तन रूप कोई भी कार्य बिना कारणके हो नही सकता, इसलिए कोई न कोई सत्ताभूत पदार्थ इसका कारण होना ही चाहिए। बस उस परिवर्तनका कारणरूप पदार्थ ही है कालद्रव्य, अर्थात् कालाणु ही निश्चयकाल है ऐसा समझना । कालका अर्थ लोकमे मृत्यु प्रसिद्ध है। वह भी वास्तवमे व्यवहार कालके अतिरिक्त कुछ नही। प्रतिक्षण जो कोई भी पर्याय उत्पन्न हो होकर विनशती रहती है या परिवर्तन पाती रहती है, वह उस पर्यायकी मृत्यु ही है। कोई पर्याय थोडे काल स्थित रहकर मृत्युको प्राप्त हो जाती है और कोई कुछ अधिक देर स्थित रहकर । जीवका शरीर उत्पन्न होकर कुछ वर्ष पश्चात् नष्ट हो जाता है, उसे मृत्यु कहते हैं । वास्तवमे यह इस पुद्गल स्कन्ध रूप पर्यायका परिवर्तन मात्र ही है, अन्य कुछ नही । वास्तवमे देखा जाय तो शरीरमे भी प्रतिक्षण परिवर्तन होता ही रहता है। शिशु अवस्थाकी मृत्यु होती है तो किशोर अवस्थाका जन्म होता, किशोर अवस्थाको मृत्यु

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277