Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 272
________________ २५६ पदार्थ विज्ञान वास्तवमे सब अनेक प्रदेशी पदार्थ काय कहे जाने चाहिएं। इस चमडेके शरीरको भी तो इसलिए ही शरीर कहते हैं कि यह गलसड कर विकृत हो जाता है और काय इसलिए कहते हैं कि यह परमाणुओका पिण्ड है। पिण्ड कहो या काय एक ही अर्थ है । अतः पांच जो अनेक प्रदेशी पदार्थ है वे तो कायवान कहे जाते हैं और एक जो एकप्रदेशी द्रव्य अर्थात् काल द्रव्य है सो कायवान् नही है। यद्यपि छहो द्रव्य सत् हैं, अर्थात् अपनी-अपनी पृथक् सत्ता रखते हैं, परन्तु सबके सब कायवान् नही हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, तथा आकाश ये पाँच पदार्थ सत् भी है और कायवान् भी, इसलिए इन्हे अस्तिकाय कहा जाता है। जैनागममे इन पांचोको पचास्तिकाय कहा गया है । ३ सृष्टि स्वत सिद्ध है __इन छहो पदार्थोंका तथा पचास्तिकायोका सघात या समूह ही विश्व है। इन छहोमे भी जीव तथा पुद्गल परस्परमे मिलकर इस अखिल सृष्टिका सृजन तथा सहार किया करते है । क्योकि ऐसा करते रहना इनका स्वभाव है, इसलिए अनादिकालसे इनका यह कार्य बराबर चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा। इस कारण इस सृष्टिका सृजन तथा सहार स्वत. सिद्ध है, इसको करनेके लिए किसी ईश्वर नामकी पृथक् शक्तिकी आवश्यकता नही, क्योकि स्वभाव सदा असहाय होता है। बिना किये इस सृष्टिकी रचना कैसे होती है, यह तो एक स्वतन्त्र विषय है, परन्तु यहां इतना समझ लेना पर्याप्त है कि यदि जीव तथा परमाणु भी आकाशवत् पृथक्-पृथक् रहे होते तो यह सृष्टि न हुई होती। इस लोकमे अनादि कालसे चेतन सदा अन्त.करण युक्त ही उपलब्ध होता है शुद्ध नही। यद्यपि

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