Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 268
________________ २५२ पदार्थ विज्ञान प्रकृति भी अनुकूल होने लगती है । इस प्रकार बढते बढते दुःखसे सुखकी ओर जाता हुआ, यह काल अपने क्रपपर व्यक्तिको प्रकृतिका प्रसाद प्रदान करता है, यहाँ तक कि वही सुखमा तथा सुखमा सुखमाकाल पुन प्राप्त हो जाता है | इस प्रकार सुखसे दुखकी ओर और दुःखसे सुखकी ओर यह दो कल्प बराबर अपने-अपने क्रमपर आते हैं और कालचक्र वरावर घूमता रहता है । जो मनुष्य इस कालको ठीक प्रकार समझ जाता है वह संसारके दृष्ट प्रलोभनोमे नही अटकता । एक मात्र धर्मका आश्रय लेकर वह इस भयकर समझे जानेवाल कालके गालसे निकल कर निर्भय हो जाता है, परमपद जो मोक्ष उसे प्राप्त कर लेता है । ७. समय विभाग प्रत्येक पदार्थको मापने के लिए उसका छोटेसे छोटा भाग निकाल लिया जाया करता । इस छोटे भागको यूनिट या इकाई कहते हैं । इस यूनिटको ही उत्तरोत्तर गुणा करनेपर बडे माप बन जाते हैं, जिनसे कि हमारा नित्यका व्यवहार चला करता है । जिस प्रकार पुद्गल पदार्थका छोटेसे छोटा भाग परमाणु है और आकाशका छोटेसे छोटा भाग प्रदेश है उसी प्रकार कालका छोटेमे छोटा भाग समय है । समयका अर्थ यहाँ वह नही जो कि लोकमे साधारणत प्रयुक्त होता है, बल्कि काल - व्यवहारके अविभागी अंशको समय कहते है । इससे छोटे कालकी कल्पना नही की जा सकती । कालको कल्पना द्वारा विभाजित करते चले जानेपर उसका अविभाग अश प्राप्त होता है, जिसका आगे भाग किया जाना सम्भव नही उसे समय कहते है । आजके व्यवहार मे सेकेण्ड सबसे छोटा माना जाता है, परन्तु 'समय' उससे भी अधिक सूक्ष्म है ।

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