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फिलॉस्फर बनकर निकले है, आपके जाननेका ढग इन्द्रियोके आश्रित नही, सिद्धान्तके अनुकूल होना चाहिए ।
९ आकाश द्रव्य
सिद्धान्त है यह कि कोई भी गुण अपने किसी प्रदेशात्मक सत्ताभूत पदार्थसे पृथक् स्वतन्त्र नही रह सकता । यहाँ भी एक महान् गुण पाया जाता है - सब पदार्थोंको रहनेके लिए जगह देना, जहाँ कही भी उन्हे किसी प्रकारकी बाधा न होने पावे । इस गुणको आगममे अवगाहनत्व कहते हैं । अवगाहका अर्थ स्थान है और अवगाहनत्वका अर्थ है स्थान-दान-शक्ति । यह महान् गुण बिना किसी द्रव्यके स्वतन्त्र नही रह सकता, अतः उसको धारण करनेवाले पदार्थका नाम है-आकाश ।
१२ व्योम - मण्डलकी विचित्रता
अवगाहनत्व नामका यह गुण भी काल्पनिक नही है । इस गुणका बडा महान् कार्य आज प्रत्यक्ष देखा जाता है । केवल स्थान दे देना मात्र हुआ होता तब तो सम्भवत आपकी शंका ठीक भी होती, परन्तु यहां इतना मात्र नही है । इसकी सहायतासे ही आजका विज्ञान व्योम-मण्डलको चीरकर दूर-दूरके आकाशमे अपने स्पुत्निक पहुँचानेको तथा उन्हे वहाँ ठहरानेको समर्थं हुआ है।
वह कौन शक्ति है जिसने सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि इन महान् पृथ्वी पिण्डोको अधरमे टिकाया हुआ है । आपको ऐसा भान होता है कि यह पृथ्वी जिसपर हम रहते हैं यह तो ठीक टिकी हुई है, परन्तु जो चन्द्र, सूर्य आदि ऊपर दिखाई देते हैं, वे अवश्य अघरमे लटके हुए हैं । परन्तु वास्तवमे पृथ्वी भी उन्हीकी भांति अधरमे लटकी हुई है । दूरसे देखनेके कारण सूर्य, चन्द्र आदिको सीमाएँ दिखाई देती हैं, इसलिए वे अधर लटके दिखाई देते हैं । निकटसे देखनेके कारण पृथ्वीके ओर-छोर दिखाई नही पडते, इसीसे यह
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