Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

View full book text
Previous | Next

Page 252
________________ २३६ पदार्थ विज्ञान दूसरे स्थानपर चला गया, परन्तु सूक्ष्म चलना पदार्थके अन्दर ही अन्दर उसके प्रदेशो तथा प्रमाणओमे होता है। उनका बाहरकी तरफको निकलना या फैलना ही वह अदृष्ट सूक्ष्म कार्य है । भले ही मूल पदार्थ अपने स्थानसे न हिले परन्तु उसके भीतरी प्रदेशोका अथवा परमाणुओ का जो बाहरकी ओर फैलता होता है अथवा भीतरकी ओर सिकुडना होता है उसके लिए उन प्रदेशोको भी अपने स्थानसे हिलना होता ही है, जो अदृष्ट है। इस स्थूल तथा सूक्ष्म दोनो प्रकारके चलनेमे जो सहायता दे उसे धर्म द्रव्य कहते हैं। इसी प्रकार ठहरनेके कार्यमे भी दो बातें देखी जाती हैंस्थूल तथा सूक्ष्म । स्थूल ठहरना तो सबको दिखाई देता है कि पदार्थ चलता-चलता रुक गया, परन्तु सूक्ष्म ठहरना पदार्थके मुडनेके समय होता है। चलता चलता ही पदार्थ यदि मड़ना चाहे तो उसे मोड़पर जाकर क्षण-भरको ठहरना अवश्य पडेगा। भले ही वह ठहरना दृष्टिमे न आये पर होता तो है ही। इन स्थूल तथा सूक्ष्म दोनो प्रकारके ठहरनेमे जो सहायता करे उसे अधर्म द्रव्य कहते है। इसपर-से यही समझना कि धर्म द्रव्य जीव तथा पुद्गलको गमन करनेमे या फैलने-सिकुडनेमे सहायक होता है और अधर्म द्रव्य इन दोनोको ठहरनेमे या मुड़नेमे सहायक होता है। यहां ठहरनेका अर्थ चलते-चलते ठहरना है। आकाश जो सर्वदा ठहरा ही रहता है उसको भी ठहरनेमे अधर्म द्रव्य सहायक होगा ऐसा न समझना, क्योकि जो चलता ही नही उसके ठहरनेका प्रश्न ही क्या ? अतः धर्म व अधर्म केवल जीव तथा पुद्गलको ही सहायक हैं, आकाशको अथवा स्वयं अपनेको नही क्योकि ये दोनो द्रव्य भी न स्वयं चलते हैं और न चलते-चलते ठहरते हैं। ये दोनो केवल आकाशवत् लोकाकाशमे व्याप कर स्थित रहते हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277