Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 237
________________ ९ आकाश द्रव्य २२१ प्राप्त हो वही उस पदार्थका माप समझो। जोवको पहले असख्यातप्रदेशी कहा गया है और पुद्गलको एक, दो, सख्यात तथा असख्यातप्रदेशी । उसका स्पष्टीकरण यहाँ किया जाता है। प्रदेशोकी गणनासे तात्पर्य आकाशके स्थानका है। आकाशके छोटेसे छोटे स्थानका नाम प्रदेश है। जिस प्रकार पुद्गलके छोटेसेछोटे भागका नाम परमाणु है, उसी प्रकार यहाँ भी समझो। कल्पना द्वारा जिस प्रकार पुद्गल पदार्थको तोड़ते-तोड़ते उसका अन्तिम छोटा भाग प्राप्त किया गया था, जिसका कि आगे भाग किया जाना सम्भव नहीं था और उसे परमाणु कहा गया था, उसी प्रकार यहाँ भी आकाशको कल्पना द्वारा खण्डित करते-करते इसका जो ऐसा अन्तिम भाग प्राप्त हो, जिसका आगे खण्ड किया जाना सम्भव न हो, उसे प्रदेश कहते हैं। जिस प्रकार परमाणका कोई आदि, मध्य, अन्त या लम्बाई, चौडाई, मोटाई नही है, जिस प्रकार परमाणु स्वयं ही अपना आदि है, वही अपना मध्य है और वही अपना अन्त है, जिस प्रकार परमाणुकी लम्बाई भी परमाणु मात्र है, उसकी चौडाई भी परमाणु मात्र है और उसकी मोटाई भी परमाणु मात्र ही है, उसी प्रकार प्रदेशको लम्बाई-चौडाईमोटाई भी प्रदेश मात्र ही है। सरल रूपसे समझनेके लिए यह कह सकते हैं कि एक परमाणु आकाशका जितना स्थान घेरकर रहे उसे प्रदेश कहते हैं। अर्थात् आकाशको मापनेका गज परमाणु है। उससे प्रदेश प्राप्त होता है। आकाशके जितने स्थानको मापना हो उसके प्रदेश गिन लीजिए, बस उतना ही वह आकाशका क्षेत्र कहलाता है। इस प्रकार किसी भी पदार्थका अपना क्षेत्र भी उतना ही है जितने आकाशके क्षेत्रको वह घेरकर रह सके। क्योकि आकाशका परिमाण प्रदेशोकी

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