Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 238
________________ २२२ पदार्थ विज्ञान गणनासे जाना जाता है इसलिए सभी पदार्थोका आकार या क्षेत्र भी प्रदेशकी गणनासे जाना जाता है । ९. लोकका माप लोकको मापनेके लिए, इस मनुष्याकार पूर्वोक्त आकारमे प्रदेशोको गिननेपर, वे असख्यात होते है, अर्थात् इतने होते हैं जिन्हे कि हम गणित द्वारा गिन न सकें, इसलिए लोकाकाश असंख्यात-प्रदेशी है। इसे भी स्पष्ट करनेके लिए यो कह लीलिए कि यदि लोकके इस पूर्वोक्त आकारमे परमाणुओको नीचेसे ऊपर तक तहपर तह लगाते हुए चिनना प्रारम्भ करें तो, निचली तहमे असख्यात परमाणु आते है, उससे ऊपर-ऊपरवाली भी प्रत्येक तहमे असंख्यात-असख्यात ही परमाणु समझना। इन सब परमाणुओका जोड़ करें तब भी असंख्यात ही रहते हैं, अनन्त नही हो पाते। असंख्यातके अनेको भेद किये जा सकते हैं-छोटा असख्यात, . उससे बड़ा असख्यात, उससे भी बडा असख्यात आदि। अकोकी गणनामे तो इसे छोटा-बडा कहने की आवश्यकता नही पडती, क्योकि वहां तो हम अकका नाम ले देते हैं परन्तु जहाँ अकका नाम लिया जाना सम्भव न हो वहाँ तो छोटा-बडा ही कहना पडेगा। जहाँ तक गणना या गणित काम करता है वहां तक सख्यात कहा जाता है। सख्यातके बडेसे बड़े अकके ऊपर जाकर छोटेसे छीटा असख्यात प्राप्त होता है। उसमे एक-एक अक जोडते जानेपर वह सभी ऊपर-ऊपरके असख्यात कहे जाते हैं । इस प्रकार असख्यात बार बढा देनेपर इसका जो बड़े से बड़ा रूप प्राप्त हो । जाता है, वह उत्कृष्ट असख्यात है, उससे ऊपर जानेपर जघन्य या छोटा से छोटा अनन्त प्राप्त होता है। इसके भी असख्यातवत् 'जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद किये जा सकते हैं।

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