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६ जीवके धर्म तथा गुण
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कल्पनाओके जालमे उलझकर आप चिन्तित हो उठते है । इस प्रकारका कल्पना-ज्ञान भी श्रुतज्ञानका ही एक भेद है जो मन द्वारा होता है । यह भी मति-ज्ञानपूर्वक होता है, क्योकि कल्पना प्रारम्भ होनेसे पहले किसी न किसी इन्द्रियसे पदार्थंका ज्ञान अवश्य होता है, तब पीछेसे उस विषय सम्बन्धी कल्पना चला करती है ।
सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र आदिकोपर से हिसाब लगाकर भूत व भविष्यत्की कुछ बातोको जान लेना ज्योतिष ज्ञान कहलाता है । हस्त पादादिकी रेखाएँ देखकर भूत-भविष्यत् सम्बन्धी कुछ बातें जान लेना हस्तरेखा विज्ञान है । स्वप्नमे जो कुछ देखा उस परसे भूत-भविष्यत् की कुछ बातें जान लेना स्वप्न विज्ञान है | शरीरके अंगोपागोकी बनावट देखकर तथा उसके किन्ही प्रदेशोमे चक्रादिके चिह्न-विशेष देखकर उस व्यक्तिके भूत-भविष्यत् सम्बन्धी कुछ बातें जान लेना चिह्न ज्ञान कहलाता है । श्वासके आने-जानेके क्रमको देखकर कुछ भूत-भविष्यत् की बातोको जान लेना स्वरज्ञान कह्लाता है । पशु-पक्षियोकी बोली सुनकर कुछ भूत-भविष्यत् सम्बन्धी बातें जान लेना भाषा विज्ञान है । पृथिवीकी कठोरता या मृदुता आदि देखकर भूत-भविष्यत् सम्बन्धी बातें जान लेना भीम-ज्ञान कहलाता है । बाहर मे शुभ व अशुभ शकुन देखकर कुछ भूत-भविष्यत् सम्बन्धी बातें जान लेना शकुन - ज्ञान कहलाता है । इत्यादि प्रकारके सब ज्ञान निमित्त - ज्ञान कहलाते है । यह भी श्रुतज्ञानका ही एक भेद है जो केवल मन द्वारा होता है तथा मतिपूर्वक होता है, क्योकि पहले इन्द्रियो द्वारा कुछ देख व सुनकर तत्सम्बन्धी विचारणा द्वारा पीछेसे भूत-भविष्यत्का पता चलता है ।
ये सब तथा अन्य भी भेद-प्रभेदोको धारण करनेवाला यह श्रुतज्ञान अत्यन्त व्यापक है । वर्तमानका सर्व भौतिक विज्ञान यह श्रुतज्ञान ही हैं । प्रत्यक्ष-परोक्ष, दृष्ट-अदृष्ट, सम्भव - असम्भव सभी बातो