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४ जीव पदार्थ सामान्य
८९ करण जब ग्लानिसे युक्त होकर मलिन हो जाता है तो शरीर भी मलिन तथा निस्तेज प्रतीत होने लगता है। अत जीव मरणके समय जैसे अन्त करणसे युक्त होकर जाता है वैसा ही शरीर लेकर जन्म पाता है। __ क्योकि जीवन दो प्रकारका है इसलिए जन्म-मरणरूप ससार भी दो प्रकारका है-एक अन्तरग ससार और दूसरा बाह्य ससार। अन्तरंग ससार अर्थात् जन्ममरण अन्त करणमे होता है और बाह्य समार शरीरमे । अन्त.करणमे हर क्षण विकल्पोकी जो अटूट धारा चलती है वही अन्तरंग ससार है। और एक शरीरके पीछे दूसरे शरीरके आ-आकर जाने और जा-जाकर आनेकी जो अटूट धारा चलती रहती है वही बाह्य ससार है। इन दोनोमे केवल इतना ही अन्तर है कि अन्तरंग ससाररूप जन्म-मरण बहुत शीघ्रतासे होता है और बाह्य संसाररूप जन्म-मरण कुछ देरसे होता है, परन्तु दोनोके स्वरूपमे कोई भेद नही है। जिस प्रकार नवीन शरीरके आनेका नाम जन्म है और पहले शरीरके जानेका नाम मरण है उसी प्रकार नये विकल्पके आनेका नाम अन्तःकरणका जन्म और पहले वाले विकल्पके जानेका नाम अन्त करण का मरण है।
इन दोनो प्रकारोके ससारोमे अन्तरंग ससार ही प्रमुख है क्योकि बाह्य ससारका बीज वही है। जिस प्रकार बीज सदा छोटा होता है और उससे उत्पन्न होनेवाला वृक्ष बडा, इसी प्रकार बाह्य ससारका बीजरूप जो अन्तरग ससार है वह सूक्ष्म है। अन्तरगकी चचलतासे ही बाहरकी चचलता है। अन्तरगकी चचलता रुक जानेपर बाहरकी चचलता भी अवश्य रुक जाती है। जिस प्रकार बीज नष्ट हो जानेपर बाह्य ससारकी उत्पत्ति असम्भव है।
जन्म मरणरूप अन्तरग तथा बाह्य ससार अथवा चचलता ही