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५ जीव पदार्थ विशेष
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स्वर्गके अतिरिक्त कुछ और भी देव होते हैं, जो कुछ छोटी जातिके माने जाते हैं । इनके अन्तर्गत सूर्य, चन्द्र, ग्रह, तारा नक्षत्र आदि लोकोमे रहनेवाले देवोको ज्योतिषदेव कहते हैं । पृथिवीके नीचे एक भावनलोक है, जिसमे कुछ सुन्दर भवन हैं । इन भवनोमे रहनेवाले लोग भवनवासी देव कहलाते हैं । असुरगण, राक्षसगण, नागदेवता, वायुदेवता, जलदेवता, अग्निदेवता, श्येन या सुपर्णं ( पक्षी विशेष ) देवता इत्यादि देवता जो भारतमे प्रसिद्ध है वे सब इसी जातिमे सम्मिलित हैं । इस पृथ्वी तलके किन्ही चौराहोपर या वृक्षकी कोटमे या सूने मकानोमे, श्मशान भूमियोमे तथा इसी प्रकार वन-खण्ड आदि प्रदेशोमे रहनेवाले भी कुछ देव होते हैं, जिन्हे व्यन्तर कहते हैं । भूत, प्रेत आदिके रूपमे जो प्रसिद्ध हैं वे सब इसी जाति हैं । व्यन्तर देव सबसे नीची जातिके होते हैं ।
ये सब ही प्रकारके देवलोग पूर्वकृत पुण्य कर्मों का फल भोगनेके लिए ही इस गतिमे जन्म धारण करते हैं । अधिक धर्मात्मा तथा ईश्वरपरायण व्यक्ति स्वर्गवासी देव बनते हैं और ईश्वरपरायण होकर भी पापवृत्ति करनेवाले जीव अपने-अपने योग्य नीची जातिके देव होते हैं ।
६ नरक तथा स्वर्गकी सिद्धि
आजके जगत्का ऐसा विश्वास है कि नरक-स्वर्ग कोई वस्तु नही है | जो कुछ है इसी पृथ्वीपर है । यही नरक है और यही स्वर्ग, क्योकि यहाँपर उत्कृष्ट प्रकारका सुख तथा दुख दोनो उपलब्ध होते . है । उत्कृष्ट दु खमे ग्रस्त प्राणी नरककी वेदनाका अनुभव कर रहा "है और उत्कृष्ट प्रकारके सुखमे मग्न प्राणी स्वर्ग-सुखका अनुभव कर रहा है ।
तिर्यंच गतिवाला जो पालतू कुत्ता मखमलके गद्दे पर सोता है,