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पदार्थ विज्ञान हैं, और लोकमे जहाँ कही भी जीव देखा जाता है वहां इन शरीरोमे ही देखा जाता है, इसलिए इसे कायके भेद न कहकर जीवके ही भेद कह दिया गया है। जीवके काय या शरीर मुख्यत छह प्रकारके होते है, इसलिए जीवोको पटवायके जीव ऐसा कहा जाता है।
स स्थावरके भेदोंके अन्तर्गत बताया गया था कि स्थावरके पांच भेद हैं-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति, और उसके पांच भेद हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असज्ञी पचेन्द्रिय तथा सज्ञी पचेन्द्रिय । इस प्रकार यद्यपि जीवोके शरीर १० प्रकारके होते हैं, फिर भी यहाँ छह ही प्रकारके काय कहे गये है। इसका कारण क्या है यह बताता हूँ। देखिए, इन दसो भेदोमे हम देखते हैं कि जिस प्रकार पृथिवी, जल, अग्नि, वायु व वनस्पति ये पांचो पृथक्-पृथक् जातिके शरीर हैं, उस प्रकार त्रसके भेद पृथक्-पृथक् जातिके नहीं है । पृथिवी एक ठोस पदार्थ है, जो किसीके भी खाने-पीनेके काममे नहीं आ सकती। जल एक तरल पदार्थ है, जिससे प्यास बुझती है । अग्नि, प्रकाश तथा ज्वाला स्वरूप विचित्र ही पदार्थ है जिसमे भस्म कर देने की शक्ति है। वायु सचाररूप एक भिन्न ही जातिका पदार्थ है, जिससे श्वास लिया जाता है। वनस्पति एक पृथक् ही जाति है, जो खानेके काम आती है। पांचोके प्रयोग पृथक्-पृथक् हैं, पांचोका रूप पृथक् है, पांचोकी बनावट पृथक् है । परन्तु अस शरीरके पांचो भेदोके रूप व बनावट एक ही जातिके हैं। पांचो ही रक्तमासादिके बने हुए हैं। भले ही उनमे जाननेके साधन जो इन्द्रियाँ है उनकी अपेक्षा भेद हो परन्तु जहाँ तक उस पदार्थसे सम्बन्ध हैजिससे कि उस शरीरका निर्माण हुआ है वह पाँचोमे एक जातिका हैं। इसलिए पांच जातिके स्थावर--पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, व वनस्पति तथा एक जातिके अस । इस प्रकार सब मिलकर छह जातिके शरीर